आओ पेड़ लगाएँ मिलाकर÷
दादा जी घर के सामने पार्क में पौधे लगा रहे थे।
उसी समय पार्क में कुछ छोटे बच्चे खेल आ गया और खेलते खेलते उनकी नज़र दादा जी पर पड़ी वे बोले ''अरे ! चलों देखें दादा जी क्या कर रहे हैं? बच्चे उनके पास पहुँच गए। उन्होंने पूछा दादा जी ये आप किस चीज
का पेड़ लगा रहे हैं?" दादा जी ने बताया कि वे जामुन का पेड़ लगा रहें हैं। यह सुनकर, बच्चे बहुत खुश हुए। उनमें से एक बच्चे ने दादा जी से पूछा दादा जी आप हमें बताइए कि इन पेड़ों के लिए किस चीजों की जरुरत होती हैं? दादा जी बोलो बेटा पेड़ों के लिए मिट्टी,धूप,हवा और पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती हैं फिर दादा जी ने बच्चों से पूछा बच्चों तुम्हें इस पेड़ से क्या मिलेगा बच्चें तुरंत बोल पड़े जमुना हाँ जामुन के अलावा और क्या मिलेगा? बच्चे एक दूसरे का मुंह देखने लगे। फिर दादा जी ने उन्हें बताया, बच्चों पेड़ हमें फल फूल के अलावा छाया व स्वच्छ हवा भी देते हैं। पेड़ों से हमें लकड़ी मिलतीं हैं। पेड़ पानी बरसाने में भी सहायक होते हैं इसकी शाखाओं पर पक्षी रहते हैं। और जामुन से हमारी मधुमेह कि बीमारी खत्म हो सकतीं हैं। बच्चों ने सारी बातें ध्यान से सुनी और बोले दादा जी पेड़ हमारे लिए इतने उपयोगी हैं तो हम सब भी पेड़ लगाएँगे।
आओ मिलकर वृक्ष लगाएँ।
अपनी धरती स्वर्ग बनाएँ। धन्यवाद-अपराजिता राॅय 🙏🏻
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तुझ्यावर मला निशब्द प्रेम करावस वाटत....
इवलूश्या तुझ्या उघड झाप करनार्या डोळ्यांना ,
एकटक पाहत राहावस वटत....
एकांतात माझ भान विसरुन ,
मला तुझच होउन जावस वाटत.....
मनात येणार्या माझ्या प्रश्नाची उत्तर ,
मला तुझ्या जवळच सापडेल अस वाटत....
समोर तू असतास लाल गुलाबी होउन,
मला तिथन पळून जावस वाटत....
तुझ्यात विरंगुन मला ,
तत्लीन व्हावस वाटत....
अचानक तू समोर यावा ,
नी क्ष्वास माझा थांबून जावासा वाटत....
मी एकटक तुला पाहत राहाव,
क्षणात बिलगुन जाऊन ,
नी घट्ट तुला पकडावस वाटत......-
काश मैं पक्षी होता
अगर काश मैं पक्षी होता ,नभ-समंदर में चुग कर आता ।
ना कभी सताते जल-कीच मुझे भी ,ना अटक नैन का तारा बनता ।
भोर सुबह में निकला सूरज ,तो उसे हराकर मैं जग ही जाता ।
ना कटीले बोल को तुम सुन पाते ,ना दर्द दिलों को मैं देकर जाता ।
अगर काश मैं पक्षी होता ,ना कभी इंसान सा बनना चाहता ।
जो मिलती बुद्धि-वरदान मुझे तो ,हर पशु लज्जित कर घमंड ही आता ।
अगर काश मैं पक्षी होता ,ना खुदा का भेद मैं खुद कर पाता ।
आँगन-मस्जिद में सुबह गुजरती ,तो शाम बसेरा मंदिर बन जाता । ।-
होय रोज मला ही मोठ व्हायचंय
जगण्याकडे जरा वेगळया नजरेने पहायचंय
मलाही माझ्यातल्या , मी ला शोधायचंय
त्या सुंदर अश्या सफरी वर जायचयं
मलाही माणसां मधल्या कवीला शोधायचंय
अन मलाही माणुसकीला जपायचयं
येणाऱ्या भीषण रात्री नंतर सुखद सुर्योदय पहायचाय
घामाच्या फुलांनी एक बाग फुलवायचीय
मलाही कर्तुत्वाने लखलखणारी , उद्याची पहाट पहायचीए
हो रोज मला हळू हळू का होईना पण मोठं व्हायचंय !-
हमने आज सोचा ,कि कल बेहतर होगा
और कल सोचेंगे ,कि कल कुछ कर लिया होता।
जो बीत गया वो मिला नही
क्या आयेगा वह पता नही
जो था हाथ में वह भी धीरे धीरे फिसल गया
तारों में न जाने कब सूरज निकल गया।
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चेहरे पर एक चेहरा लगाना पड़ता है
मैं ठीक हूँ कहकर मुस्कुराना पड़ता है
उस तन्हाई का भी मोल क्या लगाओगे
जब रोकर खुदको चुप कराना पड़ता है
वो बचपन भी कोई बचपन हुआ भला
गिरने की उम्र में संभल जाना पड़ता है
जो चले जाओ कहा तो चले गए तुम?
प्यार में सनम हक़ जताना पड़ता है
यूँ अकड़ कर सलामी तो मिलेगी तुम्हें
दुआ के लिए मगर सर झुकाना पड़ता है
यूँ रातों को ना जगाया कर ऐ ख्वाब मेरे
सुबह जल्दी काम पर जाना पड़ता है
ये अदब की महफ़िल भी कमाल है यारों
हाँ में हाँ, वाह में वाह मिलाना पड़ता है-
माझं आणि तिचं नातं
वर्णन केले तर कादंबरी होईल,
कादंबरी लिहुन तिचे उपकार
या जन्मी फिटणार नाही...,
असं तिचं आणि माझं नातं
"माय-लेकाचं"-
रात के गोंद में सुबह है खेलता
समय श्याम तक कैसे है बदलता
लाखों तारे रात में है दिखते
दिन के उजाले में एक अकेला
तारा सब धुंधला हैं कर देता
हमारी चेष्ठा ही हमें
औरों सर्वश्रेष्ठ है बनाए है रखता ।।
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चारोळी / कविता आवडल्यास
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आपण सर्व कवी आणी कवयत्री
वेळ नसला मिळत तरी वेळ काढावी
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