कथा एका गुलाबाच्या रोपाची,
हिरव्या हिरव्या पानावर
फुल असे उमलले
जसे बघुनी तिला
मन माझे बहरले !!
नाजूक कळी ती
अंगावर तिचा काटे
बघुनी तिला नयनी
तिचा जवळ हात जाते !!
केव्हा पांढरी ....,
केव्हा पिवळी....,
तर केव्हा गुलाबी
रंगाने ने ती सजते
बघताच तिला मग
मन आपले ती मोहते !!-
सहमे हुए हैं फूल, कलियाँ हैं डरी डरी
आ गयी है देखो, इश्क़ वाली फरवरी-
एक बंद सी कली
जब उसे सूरज की धूप मिली
वो कुछ मुस्कुरा कर खिली
भौरा लूट ले गया था सपने सारे
उस सूरज की किरण में जाने क्या था
वो फिर सपने देखने लगी
जानती थी सत्य और काल्पनिकता का अंतर
पर फिर भी खुद से प्यार करने लगी
उस किरण ने हौले हौले उसे जीवन का अर्थ था बताया
क्यों ईश्वर ने उस कली को था बनाया
व्यर्थ जीवन न गवां
अपनी खुशबु तू फैला
वो किरण उसे समझा गई
जीवन में एक नई रोशनी अा गई
सही दिशा मिली कली को
वो रहती अब खिली खिली सी-
किसी के माथे का बनना श्रृंगार हो या,
किसी के चरणों में होना न्योछावर हो,
हर तरफ अपनी खुशबू ही बिखेरती हैं,
कि साख़ पर कभी बोझ नहीं होती हैं कलियाँ.. ❤❤-
आंखों में खराबी हैं या उनकी चाल शराबी हैं,
उलझन में भंवरे पर लट्टू अधखुली कली हैं!-
अगर सिर्फ़ जिस्म की भूख होती तो कब का उसे किसी शिकार की तरह दबोच लेते,
ये दिल, इसकी ये धड़कने है इश्क़ की परिस्तार
तभी तो ये अपनी कुछ हसरतें कहीं इसके किसी कोने में बादलों की तरह छिपा लेता है,
वरना इन धड़कनों का बस चले तो ये इश्क़-बाग की हर कली को अपने आगोश में समेट लेते...-
खिल जाती है कली
असीम प्रसन्नता से
जब देखती है
तितली को उड़ते हुए
एक कली से दूसरी कली पर
एक फूल से दूसरे फूल पर
मधुपान करते हुए
रंग बिरंगे पंख फड़फड़ाते हुए
जैसे बालक कोई
मां से जिद करके
कह रहा हो
मां सबसे पहले तो
आज मैं तुम्हारे
हाथ का बना कुछ मीठा खाऊंगा
और तितली फिर उड़ जाती है
मधुरस चखकर
देख उसे
कली स्वयं हो जाती संतृप्त
मां के सदृश
और पूछती है खुशी से
"बाबू, पेट भर गया ना...!!!"
🦋♥️🦋♥️🦋-
मैं सूखा-सा दरख़्त
वो बादल हसीं
उसको बरसना
होगा यहीं
मैं चुभता-सा काँटा
वो कली नाज़नीं
हमारा मिलन
होगा नहीं
- साकेत गर्ग
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भंवरों का तो काम ही है, कभी गुनगुनाना, तो कभी मंडराना,
कलियों मत छुपो पत्तो के पीछे तुम, तुम्हें ही तो अब बाग महकाना....-
मैं वो शजर हूँ जिसकी डाली पर एक ही गुल है
इन पागल हवाओं से कहदो जरा धीरे चले-