तू कभी बैठ अकेला
देखा है ये सवेरा
नात सी मधुर ध्वनि
पक्षियों का कलरव सुनहरा
कल कल बजती ध्वनि जल की
चीं चीं करना चिड़ियों का
लहराती कलियां फूलो की
हवा का वो स्पर्श सुनहरा
तू कभी बैठ अकेला
देखा है ये सवेरा
काली रात्रि फिर सुबहोलाली
मान तू सारे भय से मुक्त होगा
तब-२ तेरा मन सुसुप्त होगा
हवा की वो थपकेरियांन ,
शाखों से वो पत्ता गिर जाएगा
क्या अब तू भोर में उठ पाएगा ।।
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मेरे नाम के साथ तेरा नाम सजता है कुछ
ऐसे
शोख़ कलियों पे सजती हैं,शबनम की बूंदे जैसे-
How many memories in life
Becomes faded then disappears,
मधुमास कभी, पतझार कभी,
Read my caption's ☜-
मेरे बचपन की चहकी कलियां ,
कभी चटकी नहीं बहारों में .....
हमने खुदसे जोड़ना चाहा बहुत, लोगों को ,
पर फिर भी वो साथ मिला नहीं यारों में ......
आज बैठकर सोच रहे हैं, बीते कल की बातों को,
कि मिलती नहीं दौलत से खुशियां बाजारों में ....
पाया है जो कुछ भी आज तक,
गम-एे-मुस्कान के रूप में ,
इसके लिए हमने सालों से किए हैं मजारों में.......-
सुबह सुबह देखता हूँ खिलती हुई कलियां,
तो दिन भर में प्रफ़ुल्लित रहता है...!-
खिलती हुई कलियों को तोड़ा ना करो जनाब,,
जितनी रौनक बाग़ में है इनकी,
तेरे छूने से मुर्झा जाएंगी।।-
सुबह-सुबह देखा जो इन कलियों को मुस्कुराते हुए तो,
मन आनंदित हो गया.. और परिश्रम फलीभूत...-
कहते हैं अजी कुछ तो है दिमां(ग) बंदे में
इक छोटा सा दिल मेरा भी दिख जाये तो अच्छा हो
करते नहीं हम उनको रुसवा भरी महफ़िल में
बिन जिक्र ही वो अपना समझ जाये तो अच्छा हो
तकती हैं जिन्हें अँखिया हैं दूर बहुत हमसे
जीते जी अगर इक दिन, दिख जायें तो अच्छा हो
रहते हैं कभी खुश वो गमदार रहें ज्यादा
उन आँखों के कुछ मोती, मिल जायें तो अच्छा हो
सिमटी हुयी ये कलियां, बिखर जायें तो अच्छा हो
फूलों की तरह हरदम, ही मुसकायें तो अच्छा हो-
महक उठी हैं जुल्फें मेरी
जब खिल गईं कलियां इश्क की तेरी
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बिखरी रही कलियां गुलाब की
पलकों में जो आई निंदिया
मेरे ख्वाब महक से उठे...-