__खामोशियाँ खिलखिलाना सीख गयीं हैं मेरी,,
मानों कोई करिश्मा बन,तुम होठों पर ठहरी हो !!-
करिश्मा-ए-क़ुदरत कहूँ तो गलत नहीं होगा
जब तुम चली जाती हो तो दिन ढल जाता है-
हो गयी अब हर गुनाह की हद,
ए मेरे ख़ुदा कोई करिश्मा कर।
जिस सोच से गढ़ी तूने दुनिया,
जिस भाव से गढ़ी तूने सदियाँ,
उस सोच का क्या हो गया हाल,
देख कोना-कोना हो गया बेहाल,
हो गयी अब हर आह की हद,
ए मेरे ख़ुदा कोई करिश्मा कर।।-
तू बादल सा आता है,
मैं बूंदों सी गिर जाती हूं...
तू कुदरत का करिश्मा जैसे,
और मैं बारिश कहलाती हूं...-
वो परिश्रम का ही तो अमर फल है,
न कि किस्मत का नतीजा है।
जो नवांकुर धरती से निकला वह,
किसी के पसीनो का सींचा है।।
जो अक्सर बात करते रहतें हैं हमसे,
नए नए करतब दिखाने की।
उन्हें कह दो कि अन्नदाता के आगे,
उनका हर करिश्मा फ़ीका है।।-
ये मेरे इश्क़ का कमाल है ,या तेरे ख़ुदा का करिश्मा ,
लोग कहते हैं कि तुम्हारी कब्र से खुशबू बहुत आती है !
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कैसा है करिश्मा
ऐ खुदा
तुम्हारे एहसान है बहुत
तुम्हारे करिश्मा के कारण
हमे जिंदगी है मिली
जिंदगी का मजा ले रहे है
खुशनुमा हम हैं
माँ पिता जिसने मुझे बनाया
मेरे लिए बडे फरिश्ता है
मेरे साथ है अटूट रिश्ते
गर्व है इस करिश्में पे
मिले ये अनमोल रिश्ते-
करिश्मा है जो प्रतिदिन सूरज अभ्युदय होता ,
हर रात चँद्रमा चांदनी देता ।
ऋतु हर माह नवीन रूप लेता ,
बीज विशाल पेड़ का स्वरूप धारण करता ।
कोख से नवजात उद्भव होता ,
करिश्मा है वो भ्रूण मां के पेट में भी साँस लेता ।
जीवन ही करिश्मा है ,
मृत शव फिर सांस भरता ।।
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करिश्मा यूँ ही कोई होता नहीं आसमाँ यूँ ही झुकता नहीं..
एक आज़ होनी चाहिए एक फ़ितूर होना चाहिए,
एक शोला दहक ना चाहिए,
आँखों मे ख़्वाब और दरिया दिल होना चाहिए..
शम्स ढले चराग़ जो बन जाए,
भटके मुसाफ़िर का जो मुर्शिद बन जाए,
समझो करिश्मा वहीं हो जाए..-