हया की लाली छा जाती है कपोलों पर
"तुम्हारे गीले बालों से टपकते शबनम से
इश्क़ है हमें " उनके शब्द जब याद आते हैं
कान्हा की मूरत राधा की सीरत ढल जाती है कविता में
इशारे जब उनके अनकहे ,शब्दों में और उभर कर आते हैं-
# 24-02-2021 # काव्य कुसुम # कपोल #
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जब - जब कपोल गुलाल हुए गालों पर लाली सी छाई है ।
तब-तब मनमोहक मुस्कान से लालिमा रुख़सार पर आई है ।
मखमली धवल कपोलों पर नयनों से बहती गंगा की धारा-
रुख़सार पर गिरती-मचलती शबनम सी छटा बहुत भायी है ।-
तुम्हारी बाट जोहता यह मन,
नहीं मानता है मेरी एक भी बात।
किसी पांच साल के बच्चे की भांति ही
खुश हो जाना चाहता है,
तुम्हारी एक झलक पाकर।
उतार लेना चाहता है हृदय में
तुम्हारे चेहरे की अनंत रेखाओं को,
और तुम्हारे मुस्कुराने पर
तुम्हारे कपोलों पर पड़ते हुए हिलकोरों को।
मेरे लाख मना करने के बावजूद,
और ये जानने के बाद भी
कि तुम अब वापिस कभी नहीं आओगे।
— आशना-
# काव्य कुसुम # रूठ-रूठ कर # 28-12-2019 #
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टूट- टूट कर काँटे गुलाब हो गए ,
रूठ - रूठ कर गाल लाल हो गए ,
कौन जान पाया है रूठने वालों का प्यार -
रूठ - रूठ कर कपोल लाल हो गए ।
--------- प्रमोद के प्रभाकर भारतीय -------------------
भोर नहीं हुई,गुल खिले नहीं हैं,
मन मन्दिर में चराग जले नहीं हैं,
यूँ तो पहर कम ही बीते बिरह के,
पर लगे सदियों से मिले नहीं हैं,
मिलते हैं होठों पे मुस्कान लिए हम,
पर कुछ ज़ख्म भीतर भरे नहीं हैं,
सूखे कपोल हैं पथराई हैं आँखें,
सूख गए अश्रु,नयनों से झरे नहीं हैं,
उम्मीद है वो लौटगा कभी तो घर को,
इसलिए किवाड़ आपस में मिले नहीं हैं,
चुप रह ए पपीहे मत पुकार तू,
आसमाँ में अभी बादल घिरे नहीं हैं,-
कोई चूमे कपोलों को, कोई चूमे ललाट
अट्टहास यूँ शिशु करे, मानो कोई सम्राट-
सुबह बताया था उसने अपने शहर का नाम ही
रात ख़्वाबों में वहां से होकर गुज़रे हैं।
वहीं तेरी छत पर कही गिर गया है मेरा दिल
उसे ढूंढना जरुर
अगर मिल जाय तो लौटा देना
इस बहाने तुम्हे देख भी लूंगी।।।-
# 27-06-2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # खिलना # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे. #
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एक मैं और एक तुम, दोनों जब मिले इस तरह।
मिले जब अधर से अधर कपोल खिले इस तरह।
खिलते-खिलाते वो बात हो गई जो हुई न अब तक -
खुले न लब मुस्कराई आँखें दोनों सिले इस तरह।
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बात सबसे ज्यादा मुलायम चीज़ की चल रही थी
वो बोली-
भला इस संसार में
मखमल से भी मुलायम कुछ है, जो अज़ीज़ है
मुझसे सहन नहीं हुआ जनाब
मैंने भी कह दिया -
तेरे इन कपोलों के सामने
वो बेहूदा सा मखमल क्या चीज़ है-
ख़्यालों में हो, निशि-दिन बसती
तुम मेरे रौब बढ़ाती हो;
प्रियतम, साँसों में घुल मेरी
तुम कर्पूरी कहलाती हो।
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