प्रेम जब भी आया गीत गाते आया
प्रेम जब भी आया जोगी सा आया
कहो, क्या तुमने सुना कभी
किसी जोगी को बुरा गाते हुए..??-
"जुन्याली"
जिन्होंने नहीं लगाया कभी कोई पेड़
वे भी फूल तोड़ते हैं
फूल देते हैं।
क्या वे भी प्रेम करते हैं..??-
कक्षा मे पूछी है किसी ने
तीन अक्षर के उल्टे सीधे नाम की पहेली फिर आज,
आज फिर होंठो पर तुम्हारा नाम आया है...।-
Mar 15, 2022
मेरी प्रेम कविता के वृक्ष पर
सब पात तुम्हारी अनुपस्थिति के हैं।-
यकीन मानो, दुनिया उम्मीद पर कायम है
वरना घर के पूर्वी दिशा में उगने वाला
वो बड़ा नीला तारा जिसके होने से
मुझे तुम्हारे लौटने की उम्मीद है
टूट कर गिर चुका होता कहीं..!!-
मैं उसके इंतजार में हूं
जो एक रोज स्वयं फूल चुन लाए
न कि उसके जिसे कहना पड़े
सुनो, मुझे फूल पसंद है।।-
पाश
Jan 17, 2022
मेरे पाश थामे हाथों में
तुमने थमा दिए थे बटालवी
मेरे भीतर की क्रांति को मोड़ दिया था तुमने प्रेम की ओर
तुम्हारा कहा मैं भूलती नहीं
प्रेमी और कवि दोनों विद्रोही होते हैं
तो फिर प्रेमी बनो कवि नहीं।
कवि होना शापित होना है
तुम प्रेमी बनो
देव बनो, देव स्तुति के कंठ नहीं।
पर तुम तो जानते हो
मेरे भीतर एक अदना सा हट्ठ भी रहता है
तुम्हारे साथ मैने विरह पढ़ा
किंतु क्रांति को नहीं होने दिया भूल
तुम्हारे जाने के बाद मैंने
विरह के गीत लिखे
क्रांति की आवाज मे
और तुम्हारे विरह के घावों को घास से भर दिया।।-
Aug 5, 2022
तुम्हारे धोखे के बाद
मैने चाहा तुम्हें संसार का हर सुख मिले
किंतु प्रेम को छोड़ कर..
मैने प्रार्थना की
तुम्हें हर खुशी मिले
किंतु खुशी बांटने वाला छोड़ कर..!!
और अंततः मुझे बेहद खेद है
कि मैंने कहा, मुझे तुमसे प्रेम है।
सुनो, यह एक सफेद झूठ है..!!
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Aug 6, 2022
ये बात अक्सर मुझे रोमांचित करती है
कि ईश्वर ने मिलाया हमें
इसका अर्थ हुआ
तुम्हें बनाने के क्षण ईश्वर ने स्मरण किया मुझे
इसका अर्थ है
ईश्वर अवगत है हमारे प्रेम से
इसका अर्थ है
कि हम सदा से एक दूजे के हैं
इसका अर्थ है
इस धरा पर हमारे आने का कोई तो सबब है।-
Aug 7, 2022
मैं भटकता रहा शहर दर शहर
खोजता रहा कोई अनभिज्ञ देश
पहुंचा जहां संभव था खुद से मिलना
किसी पहाड़ी इलाके में बनी ' पहाड़ी चाय' की दुकान पर
सड़क किनारे बारिश से बचते किसी घर के नीचे
रात के अंधेरे में किसी लैंपपोस्ट तले देखते कीटों को
सुबह के पहले पहल बात करता बेलों से
समय नदी में छोड़ते अपनी प्यास के कण
विक्टोरियन शैली में बने किसी पुस्तकालय मे
खिड़की के पास वाली कुर्सी से बाहर देखते फूलों को
किसी गली में खड़े हो सुनते बांसुरी वाले को
मैं, गया
किंतु तुमसे परे कहीं पहुंचा नहीं
मैं अंततः बना रहा मैगलन
और कहता रहा दुनिया गोल है।
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