सुंदर और सुशील से आगे शक्ति भी नव परिचय हो,
घर सम्हालने वाले कर में अस्त्रों का भी संचय हो,
शक्ति रूप का जागृत दर्शन झलक उठे श्रिंगारों में,
स्वर में हो मिश्री भले घुले, हो शंखनाद हुंकारों में,
आॅखें जिनमें हवस भरा हो, उनका फूटना निश्चित हो,
जो बाज़ू मर्यादा लांघ दे उनका टूटना लक्षित हो,
स्त्रीत्व ना बन पाये विशेषण कमज़ोरी का, लाचारी का,
पिड़िता खुद ही काट गिरा दे, मस्तक अत्याचारी का,
और पिता की छाती फूले बेटी धन को पाते ही,
झुक जाएं सारी वहशी आॅखें उसके नज़र उठाते ही,
स्त्री, केवल रक्षित ना होकर औरों को रक्षक जैसे हो,
मेरे विचार से, आज अभी से कन्या पूजन ऐसे हो।
ः- हेमन्त सिंह
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