सुंदर और सुशील से आगे शक्ति भी नव परिचय हो,
घर सम्हालने वाले कर में अस्त्रों का भी संचय हो,
शक्ति रूप का जागृत दर्शन झलक उठे श्रिंगारों में,
स्वर में हो मिश्री भले घुले, हो शंखनाद हुंकारों में,
आॅखें जिनमें हवस भरा हो, उनका फूटना निश्चित हो,
जो बाज़ू मर्यादा लांघ दे उनका टूटना लक्षित हो,
स्त्रीत्व ना बन पाये विशेषण कमज़ोरी का, लाचारी का,
पिड़िता खुद ही काट गिरा दे, मस्तक अत्याचारी का,
और पिता की छाती फूले बेटी धन को पाते ही,
झुक जाएं सारी वहशी आॅखें उसके नज़र उठाते ही,
स्त्री, केवल रक्षित ना होकर औरों को रक्षक जैसे हो,
मेरे विचार से, आज अभी से कन्या पूजन ऐसे हो।
ः- हेमन्त सिंह-
बिकता कहीं वर है यहाँ, बिकती तथा कन्या कहीं,
क्या अर्थ के आगे हमें अब इष्ट आत्मा भी नहीं !
हा ! अर्थ, तेरे अर्थ हम करते अनेक अनर्थ हैं
धिक्कार, फिर भी तो नहीं सम्पन्न और समर्थ हैं
क्या पाप का धन भी किसी का दूर करता कष्ट है ?
उस प्राप्तकर्ता के सहित वह शीघ्र होता नष्ट है
आश्चर्य क्या है, जो दशा फिर हो हमारी भी वही,
पर लोभ में पड़कर हमारी बुद्धि अब जाती रही !-
बेटे- बेटे की चाह में,
बेटी को न ठुकराओं।
बहु सबकों चाहिए घर में,
बेटी का जन्म नहीं चाहिए।
पत्नी , मां , से सबको है प्यार,
एक बेटी को रोने का भी नहीं अधिकार।
एक नारी ही नारी को नहीं हैं अपना रही,
(अनुशिर्षक में पढ़ें 🙏😊)-
कमबख्त जब भी मैं किताबों से इश्क़ करना चाहता हूँ ना.......
पता नहीं तब-तब Social Media से कोई ना कोई कन्या की Request आ ही जाती है......!!
😜😜🤣🤣-
कविताएँ
वो कन्याएँ हैं
हुई थी जिनकी भ्रूणहत्या।
अब वो मानव शरीर में नहीं
मानव मन में जन्म लेती हैं
और बस जाती है
मानव हृदय में।-
कोख में पल रही कन्या को जिसने बोझ बताया था
आज उसीने कन्या भोज की इच्छा को जताया था
थी मंशा उसकी भी माँ को भोग लगाऊँगा
कुछ पुण्य मैं भी इससे तो कमाऊँगा
कैसे पूरी करेगी माँ उसके इस इच्छा को ?
जो दे नहीं पाया अपने बेटी के जीवन रूपी भिक्षा को
हो निर्दयी कोख में मिटा दिया था जिसने बेटी को
कैसे आत्मा स्वीकार करेगी उसकी ऐसी अभिलाषा को?
मत मारो कोख में ये ही तो सब कुछ का सार है
है यही तो माँ है, बहन है इन्ही से तो संसार है...
होगी कामना पूरी तेरी भी बस इतना मन में विचार लो
ना मारूँगा, ना मारने दूंगा इतना बस मन में ठान लो..!!
Date:- 24 सितम्बर 2017©©-
बेटी को मरवा दिया जिसने पत्नी की कोख में
कन्या ढूंढने निकला है वो नवरात्री के कन्याभोज में.-
बेटी बोझ है वो ऐसा मानती हैं साहब।
फिर कन्या भोज के लिए कन्या क्यू खोजती है साहब।-
माँ के अंदर बहन के अंदर बसी होती है लङकियाँ
गर समझो तो अमूल्य होती है लङकियाँ
घर को संजोने वाली भी होती है लङकियाँ
खुद से भी प्यारी होती है सबको अपनी बेटियाँ
घर सुना-सुना हो जाता है जब रुखसत होती है बेटियाँ
काँटे की चुभन सी बीतती है एक पल और एक घङियाँ
हर किसी को प्यारी जब होती है इनकी छवियाँ
तो फिर दुनिया क्योंं कतराती है धरा पर लाने में लङकियाँ?
गर युँ कतराओगे धरा पर लाने मे बेटियाँ
तो फिर कहाँ से पाओगे औरत की हर एक छवियाँ ?-
जब-जब नारी के सम्मान की बात सामने आएगी
एक सवाल हमेशा हीं मानस-पटल पर छाएगी
क्या हम कभी नारी को उसका सम्मान दे पाएंगे?
क्या हम कभी नारी को उनका अधिकार दे पाएंगे?
इस सवाल की तह तक जाने से पहले एक बात सोचना होगा
कन्या भ्रूण हत्या को हर हाल में रोकना होगा
हर किसी को अपनी मानसिकता बदलनी होगी
ये अत्याचार, ये बलात्कार कितनी बेड़ियों में जकड़ी है
इन सब बेड़ियों को हर हाल में तोड़ना होगा
उन्मुक्त गगन, ये धरती उपवन इनकी भी तो चाह है
तभी हो पायेगी नारी गौरव की रक्षा
पुरानी विचारधारा को अब छोड़ना होगा...!!!!
Date:- 25 सितम्बर 2017©©-