बात बस इतनी सी है,
कि वो मेरे ज़र्रे ज़र्रे में था,
और मैं उसके कतरे में भी नही!-
वो जो अपने खून के कतरे तक से डरते है
हाय बड़ी बेरहमी से क़त्ल औरों के करते है-
कतरे का बिखरकर उफनता सैलाब हो जाना .
मुहब्बत की यह फितरत है बेहिसाब हो जाना .
यूँ तोड़ा है यकीन मेरा उसने इस मोहब्बत में ,
किसी अच्छी दवा का जैसे बेबुनियाद हो जाना .
है याद मुझको होंठों की खामोशियों के दिन ,
आँखों ही आँखों में फिर भी आदाब हो जाना .
हम जीते थे जिसके बास्ते वो औरों पे मर मिटा ,
ए मौत अब तो छोड़ दे हम पर नाराज हो जाना .
जिस जज्बात की कोई भी कदर न हो जमाने में ,
यही बेहतर उसका इस जहाँ में "राज" हो जाना .-
अभी भी गुमाँ में जी रहे हैं कई कतरे इधर उधर ,
समंदर को कहाँ फुरसत के इन्हें आ कर आईना दिखाए।-
कुछ आंसू के कतरे हैं,
कुछ दर्द भरे अफ़साने हैं!
कुछ बातें तेरी मेरी हैं,
कुछ बीते गीत पुराने हैं!
सिद्धार्थ मिश्र-
बात बस इतनी सी है,
वो मेरा सब कुछ थी,
और मैं उसका कुछ भी नहीं....!-
मेरे हर कतरे कतरे पे , तेरा नाम लिखा है,
तुमसे रूबरू होने में मुझे सुकून मिलता है
तेरी काबिलियत पे, मुझे नाज़ रहता है......
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कुछ आंखों में ख्वाब पुराने हैं,
कुछ दिल में तन्हाई के मेले हैं,
कुछ बारिशों के मौसम हैं,
कुछ अहसासों से मन गीलें हैं।-