कल रात तुमने मुझको पुकारा था याद है?
यादों के साथ पल वो गुज़ारा था याद है ?
इकटक निहारते रहे तुम ख़्वाब की तरह,
जुल्फ़ों को मेरी तुमने सँवारा था याद है?
माथे को मेरे चूम के बैठे थे सामने,
इस इश्क ने तुम्हें भी निखारा था याद है ?
सुनकर वफ़ा की आहटें थीं आँखें जब खुलीं,
हाथो में मेरे हाथ तुम्हारा था याद है?
मुस्कान दिल के पोरो को छूकर गयी 'शिखा'
अहसास हद से ज़्यादा वो प्यारा था याद है?
-दीपशिखा
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YQ से जुड़कर धीरे-धीरे लिखना सीख रही हूंँ।
😇😇... read more
सबसे प्यारा सबसे न्यारा अपना हिंदोस्तान है ,
इसके क़दमों में समर्पित अपनी भी ये जान है!
चंद्र शेखर,और भगतसिंह जैसी कुर्बानी यहाँ,
बोस जैसे वीरों से, इस देश की पहचान है!
उन शहीदों को सलामी मिट गए जो देश पर,
इस तिरंगे को सलामी ये हमारी शान है!
देश की इस आबरू पर कोई डाले गर नज़र,
रख दे मिट्टी में मिलाकर,उसका ही नुकसान है!
पाई आज़ादी बहुत मुश्किल से हमने ये 'शिखा',
ये वतन फूले फले बस, इक यही अरमान है!
-दीपशिखा
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अपने लब से मेरे लब को आ कभी सिलने ज़रा,
तेरी धुन में बावरी हूँ आ कभी मिलने ज़रा,
अब फ़कत काँटे बचे हैं दिल के गुलशन में मेरे,
सब्ज़ कर साँसें मेरी तू इनपे आ खिलने ज़रा!
-दीपशिखा
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सूखा है दिल का ये आँगन इश्क़ की बरसात कर,
आ कभी पहलू में मेरे महकी महकी रात कर!-
लबों की हँसी का तुम्हीं तो सबब हो,
मेरी ज़िन्दगी तुम,तुम्हीं मेरा सब हो!
कभी भी मिटाए जो मिटती नहीं है,
मेरी धडकनों की हाँ तुम वो तलब हो!
-दीपशिखा-
दर्द से लिपटी हुई है ख़्वाबों की तस्वीर क्यों?
मुझसे ही रूठी हुई है मेरी ये तक़दीर क्यों?-
माँ की ममता का यहांँ क्या मोल है,
ज़िंदगी का तोहफ़ा ये अनमोल है!
माँ के आँचल के तले जन्नत मिले,
उसके आगे-पीछे दुनिया गोल है।
रखती है हर मर्ज़ की मेरे दवा,
हाथ में अमृत का जैसे घोल है!
लफ्ज़ माँ का ही सुकूँ से है भरा,
मांँ लुटाती प्यार बस,दिलखोल है!
साथ मेरे रहती हरदम ही खड़ी,
कमियों का ना पीटती माँ ढोल है!
माँ दुआ है मांँ ख़ुदा का रूप इक,
ज़िंदगी बिन माँ के डाँवाडोल है!
माँ को क्या ही लिख सकेगी ये क़लम,
माँ की बातों का 'शिखा' ना तोल है!
-दीपशिखा
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इक सुकूँ प्यारी सी बातें दे गयीं,
मीठी सी मुस्कान यादें दे गयीं!
कर्ज़दारी उनकी मुझपर है बहुत
वो जो राहत मुझको आहें दे गयीं!
-दीपशिखा-
बाद मुद्दत वो मुहब्बत आए हैं फिर माँगने,
बहकी नज़रों की इनायत आए हैं फिर माँगने!
देखकर पहली दफ़ा धड़का था जैसे दिल मिरा,
हाय वैसी ही तबीयत आए हैं फिर माँगने!
मिट गयी वो बे-करारी निस्बतें अब वो कहाँ,
किस तरह की अब वो कुर्बत आए हैं फिर माँगने?
हिज़्र में हम जल रहे थे ,वो कहीं थे लापता,
ऐसे में कैसी वो राहत आए हैं फिर माँगने?
डूबकर यादों में उनकी जो लिखे थे ख़त कभी,
आँसुओं की क्यों वसीयत आए हैं फिर माँगने?
दूरियों का मोल उनको आ गया क्या अब समझ,
किसलिए हमसे वो नुसरत आए हैं फिर माँगने?
क्यों करें उन पर यकीं अब हौसला हममें नहीं,
क्यों 'शिखा' हमसे वो सोहबत आए हैं फिर मांगने?
-दीपशिखा-
वतन का संविधान भी बनाए भीमराव जी!
ये शिष्टता का पाठ भी पढाए भीमराव जी!
सभी हैं एक जैसे ही सभी का हक बराबरी,
नये नये कानून भी बताए भीमराव जी!
समाज में ये डर था जो ये छूत का चलन था जो,
समाज की ये गंदगी हटाए भीमराव जी!
लड़ाईयांँ बहुत लड़ीं ये ज़ुल्म भी बहुत सहे,
मसीहा ये दलित के तो कहाए भीमराव जी!
किए सभी को जागरुक ये नफ़रतों की भीड़ में,
ये धर्म जाति भेद भी मिटाए भीमराव जी!
चले सदा ये सत्य की दिखाए राह पर,
ये एकता का रास्ता बताए भीमराव जी !
गुणों के तो थे खान ये,महानता की मूर्ति ,
हरेक दिल में भी शिखा समाए भीमराव जी!
-दीपशिखा
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