Deepshikha skb   (दीपशिखा)
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Joined 5 April 2018


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11 MAY AT 7:51

माँ की ममता का यहांँ क्या मोल है,
ज़िंदगी का तोहफ़ा ये अनमोल है!

माँ के आँचल के तले जन्नत मिले,
उसके आगे-पीछे दुनिया गोल है।

रखती है हर मर्ज़ की मेरे दवा,
हाथ में अमृत का जैसे घोल है!

लफ्ज़ ‌ माँ का ही सुकूँ से है भरा,
मांँ लुटाती प्यार बस,दिलखोल है!

साथ मेरे रहती हरदम ही खड़ी,
कमियों का ना पीटती माँ ढोल है!

माँ दुआ है मांँ ख़ुदा का रूप इक,
ज़िंदगी बिन माँ के डाँवाडोल है!

माँ को क्या ही लिख सकेगी ये क़लम,
माँ की बातों का 'शिखा' ना तोल है!
-दीपशिखा






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8 MAY AT 22:06

इक सुकूँ प्यारी सी बातें दे गयीं,
मीठी सी मुस्कान यादें दे गयीं!

कर्ज़दारी उनकी मुझपर है बहुत
वो जो राहत मुझको आहें दे गयीं!
-दीपशिखा

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14 APR AT 16:47

बाद मुद्दत वो मुहब्बत आए हैं फिर माँगने,
बहकी नज़रों की इनायत आए हैं फिर माँगने!

देखकर पहली दफ़ा धड़का था जैसे दिल मिरा,
हाय वैसी ही तबीयत आए हैं फिर माँगने!

मिट गयी वो बे-करारी निस्बतें अब वो कहाँ,
किस तरह की अब वो कुर्बत आए हैं फिर माँगने?

हिज़्र में हम जल रहे थे ,वो कहीं थे लापता,
ऐसे में कैसी वो राहत आए हैं फिर माँगने?

डूबकर यादों में उनकी जो लिखे थे ख़त कभी,
आँसुओं की क्यों वसीयत आए हैं फिर माँगने?

दूरियों का मोल उनको आ गया क्या अब समझ,
किसलिए हमसे वो नुसरत आए हैं फिर माँगने?

क्यों करें उन पर यकीं अब हौसला हममें नहीं,
क्यों 'शिखा' हमसे वो सोहबत आए हैं फिर मांगने?
-दीपशिखा

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14 APR AT 14:02

वतन का संविधान भी बनाए भीमराव जी!
ये शिष्टता का पाठ भी पढाए भीमराव जी!

सभी हैं एक जैसे ही सभी का हक बराबरी,
नये नये कानून भी बताए भीमराव जी!

समाज में ये डर था जो ये छूत का चलन था जो,
समाज की ये गंदगी हटाए भीमराव जी!

लड़ाईयांँ बहुत लड़ीं ये ज़ुल्म भी बहुत सहे,
मसीहा ये दलित के तो कहाए भीमराव जी!

किए सभी को जागरुक ये नफ़रतों की भीड़ में,
ये धर्म जाति भेद भी मिटाए भीमराव जी!

चले सदा ये सत्य की दिखाए राह पर,
ये एकता का रास्ता बताए भीमराव जी !

गुणों के तो थे खान ये,महानता की मूर्ति ,
हरेक दिल में भी शिखा समाए भीमराव जी!
-दीपशिखा

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13 APR AT 21:11

वफ़ा की हर कहानी को तुम्हारे नाम करती हूँ,
मैं अपनी ज़िंदगानी को तुम्हारे नाम करती हूँ!

उतरकर मेरे लफ़्ज़ों में तुम्हीं आते हो जाने जाँ
ये ग़ज़लों की रवानी को तुम्हारे नाम करती हूँ!

मुहब्बत का वो इक बोसा महकता है जो भीतर ही,
लबों की उस निशानी को तुम्हारे नाम करती हूँ!

मेरी रातों में तेरा ही सफ़र है लाज़मी दिलबर,
मैं ख़्वाबों की बयानी को तुम्हारे नाम करती हूँ!

थिरकती है शिखा धड़कन तुम्हारा साथ पाकर ही,
ये लम्हों की ज़ुबानी को तुम्हारे नाम करती हूँ!
-दीपशिखा

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27 MAR AT 16:43

शरमा के आप हमसे ना मुँह को छुपाइए,
ज़ालिम बड़ी है दिल्लगी नज़रें मिलाइए!

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28 DEC 2024 AT 17:39

तू इक हसीं गुलाब है तू मेरा कोई ख़्वाब है,
नहीं है तुझ पे कोई हक़ तो क्यों ये इज्तिराब है!

अजीब राब्ता है ये, के दिल पे कैसी छाप ये,
जिसे पढ़ूँ मैं हर दफ़ा तू मेरी वो किताब है।

सुकून भी तुझी से है ये दर्द भी तुझी से ही,
यकीन हो चला है अब तू सबसे लाजवाब है!

पुकारती है ये फ़िज़ा , निहारती हैं ख्वाहिशें,
तुझी से हूँ बहार मैं, तुझी से ये शबाब है!

शिखा का तुझको चाहने का कब इरादा था मगर
हजारों में तुझे चुना तु दिल का इंतिखाब है

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14 DEC 2024 AT 17:56

धड़कनों का चैन अपने खो चुके,
हारकर सब हम तुम्हारे हो चुके!
-दीपशिखा

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12 DEC 2024 AT 16:50

2122. 2122. 2122. 212
इस भरी बरसात में जो साथ तेरा मिल गया,
मुस्कुराहट का कमल मेरे लबों पर खिल गया!

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9 DEC 2024 AT 20:01

कहाँ पर कौन बदले रंग कोई जानता है क्या?
किसी को अपना कोई भी यहांँ पर मानता है क्या?

भरोसा तोड़ते हैं लोग बस मतलब से जीते हैं,
नक़ाबों में छुपा चेहरा कोई पहचानता है क्या?
-दीपशिखा


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