बस नही चलता मेरा खुद पर।
थाम लिया मेरा हाथ जो उसने है।
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दो नयनों में क्यों रहे, निरन्तर चतुर्मास
एकादशी है निर्जला, रख लो तुम उपवास-
मेरे घर आँगन
वो बसती मेरे मन में
तीखी लगती स्वाद में
हर लेती हर व्याधि से
देखू कैसे न मैं उसको
जो महकाती हर पल मुझकों
गुणी सुंदरी ख़ुद में है जो
बह जाती स्वर में है जो
जिनकी आभा
जिनकी प्रभा
नीति गए संसार
गुण है जो गुणवान
है ये पूज्यनीय महान
छत्तीस ऱोग निवारे जो
मस्तिष्क तक बनाये धनवान
है वो माता सी पूज्यनीय
हम करते शीश झुका सम्मान
वेद पुराण लिख गए महान
घर आँगन करना सब ध्यान
सेवन करना सेवा भाव से
मुक्ति शक्ति मिले जैसे वरदान
Ruchi prajapati....-
कमलनयन नारायण योगनिद्रा में चातुर्मास जो सोवत हैं
निद्रा में ही...... इस कर से उस करवट प्रभु जी होवत हैं-
...विठू माऊली...
देवा पाशी दिवा लाविला ...
विठ्ठलाच्या चरणी प्रकाश पाहिला...
दिव्याने हि पुजीले देवाला...
हात जोडूनी वंदन करिते माझीया विठू माऊलीला...
माऊलीचे लाभता दर्शन आम्हाला,
अवघा देह भक्तिमय जाहला...
वारकर्यांच्या कपाळी अबीर चंदनाचा टिळा लाविला...
संतांच्या संगती फुले ही वाहिली चंद्रभागेला...
साद कानी जातेच भक्तांची माझ्या पंढरीच्या राजाला..
गहिवरुन येते माऊलीचे ही
मन भेटिता आपल्या भक्तांला...
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।। जय श्री सीताराम ।।
जया एकादशी की शुभकामनाएं
7 Feb 09:26 रात्रि - 8 Feb 08:14 रात्रि-
देखा है... कभी,
तुलसी के पौधे को
ध्यान से,
अति... साधारण सी पत्तियां,
ना कोई विशेष आकृति,
ना कोई विशेष रंग,
ना कोई सुंदर फूल,
ना कोई स्वादिष्ट फल,
यूँ तो....
कुछ भी तो आकर्षक नहीं है,
इस तुलसी में,
फिर भी,
मस्तक झुक जाता है सम्मान से,
पूजनीय है वो हर घर-आँगन में,
और उसी बागीचे में,
अन्य पौधों में
आते हैं खूबसूरत फूल,
आकर्षक पत्तियां,
और स्वादिष्ट फल।
और
एक बार फिर
स्पष्ट हो जाता है कि
'आदर' का मूल भाव
सदैव सहजता.... सरलता....
और गुणवत्ता.... ही रहा है।-
हरि अनंत हरि कथा अनंता सुनहूँ करहूँ विधिपूर्वक संता
पापाकुंशा-एकादशी तिथि जप-तप मन-मस्तिष्क महंता-
तबियत खराब
हो जाएं चाहे
लेकिन व्रत रहना जरूरी है,
यही बातें तो मुझे तुम्हारी
अच्छी नही लगती..!!-