QUOTES ON #उमर

#उमर quotes

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24 JAN 2021 AT 17:01

उम्र बढ़ रहीं थीं ,
और हम ख़ुद को खों रहें थें ।
हमारी मासूम-ए-फितरत थीं ,
और लोग चालाकियां बटोर रहें थें ।
हम इश्क़ में मशरूफ रहें ,
और लोग मतलब के मोहताज रहें ।

इनसे सबक हम ले रहें थें,
इन सलीकों को भी शुमार रहें थें ।

फ़िर क्या ,
उम्र बढ़ रहीं थीं ,
और हम ख़ुद को खों रहें थे ।

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10 JUN 2018 AT 16:33

ज़िन्दगी मैं मानती हूँ तू मुझसे उमर में बड़ी है
पर तुझे हमेशा मुझे ही सिखाने की क्यों पड़ी है

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28 JUL 2020 AT 9:43

रोज-रोज जो उमर घट जाती है।
जन्मदिन की शुभकामनाओं से
बढ़ जाती है।

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21 APR 2020 AT 21:56

इक गजल के सहारे उमर काट दी,
हाँ चेहरे पे तुम्हारे उमर काट दी।
उस नदी का जल भी नसीब नहीं मुझे,
जिस नदी के किनारे उमर काट दी।।
-ए.के.शुक्ला(अपना है!)

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9 FEB 2021 AT 15:14

आईना एक घर में है और दूसरा शहर में है
साये जिनके लापता हैं आजकल ख़बर में है

चाहती हैं उनकी नज़रें क़ैद करना आज भी
उड़ चला हूँ उस नज़र से जो मेरी नज़र में है

रास्ते अपनी जगह हैं मंज़िलें अपनी जगह
ज़िन्दगी की रेलगाड़ी का मज़ा सफ़र में है

बाँधना अच्छा नहीं तो लफ़्ज़ कैसे बाँधूँ मैं
पूछते हैं आज भी वो क्या लिखा बहर में है

उम्र की बारीकियाँ ऐसे नहीं मिलती 'प्रशांत'
तजुर्बा मिलता नहीं जो ढल चुकी उमर में है

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21 JUL 2021 AT 17:31

ढल रही हैं मेरी उमर उसे छुपाऊ कैसे।

उसके गली मे हू बदनाम तो उसे पाऊं कैसे।

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22 APR 2022 AT 15:59

माँ की बाहें हमेशा खुली होतीं है
अपने संतान को गले से लगाने के लिए,
माँ की आँचल हमेशा ही फैली होतीं हैं,
अपने बच्चे को बुरी नज़रों से छुपा लेने के लिए।
माँ की उमर कभी ढलती ही नहीं,
माँ का स्वरूप हमेशा ही जवां रहता है।
माँ का दिल ममता से इतना परिपूर्ण है कि,
वो हमेशा ही बेहद ख़ुबसूरत दिखती है,मानो देवी हों।
सिर्फ़ आपकी औऱ मेरी माँ नहीं,
दुनियां की हरेक माँ।
मुझे माँ के चेहरे पे उभरतीं झुर्रियाँ केवल सहजता से स्वीकार ही नहीं बल्कि उससे प्यार भी है।
हाँ,मैं हमेशा ही संवारते रहना चाहती हूँ,
माँ के उस हसीन चेहरे को,
आख़िरी सांस तक ।
हाँ,मैंने नहीं ख़रीदे कभी झुमके खुद के लिए,
मग़र माँ को दिलाऊंगी मैं सुंदर झुमके, हरी चूड़ियाँ,पैरों के पाजेब,
गले में लाल मोतियों की माला।
चाहे ज़माना जो तंज़ कसे,
वो सब भेंट करूँगी जिसकी इच्छा
उन्होंने मन में ही त्याग दी थीं बस हमारे सपनों को साकार करने के लिए।
मेरी माँ नहीं करेंगी सजने में उमर का लिहाज़,
ज़माने को ही होना होगा अपनी कुंठित सोच पे शर्मसार।

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जरा देर से मुझको मंज़िल मिली है,
उमर भर कमी इशरतों की खली है.!

तवज्जो जमाने ने तब हमको दी है,
सिसकते हुए जिंदगी जब ढली है.!

जो सिमटे थे अरमान सच हो रहे हैं,
नयी ख़्वाहिशें मेरे दिल में पली हैं.!

मुक़द्दर के मारों का ये फ़लसफ़ा है,
बहुत शाम में हमने आंखें मली है.!

अकेले सफ़र में भटकते हैं प्यासे,
मिलेगी क्या राहत जो किस्मत जली है?

सतह पे जो थे वो भी बनते हैं आला,
हमारे लिए पर्वतों की तली है..!

स्वतंत्र देर से चाहते थे जो मंज़िल,
वो इन रास्तों पे ही चलकर मिली है!

सिद्धार्थ मिश्र

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15 OCT 2021 AT 16:26

उमर!
वो मिलने जाता हैं, उसे मिलाने ले लाया जाता हैं,
वो बाहर कमाने जाता हैं, उसे घर में घुटाया जाता हैं,
वो मारे शर्म गांव नहीं आता हैं, उसे शर्म से नहलाया जाता हैं,
वो रहता था दिलखुश मिजाज, शांत और सकुचीत है।
वो चंचला थी, गाती थी, अब उदास और हताश है
दोस्त हैं उसके बहुत से, सबसे कटने लगा है,
सहेलियां उसकी भी थी, कब की पीछे छूट गई हैं।
जिम्मेदारी को कंठस्थ किया हैं, वो बोझ की भी बोझ बन गई है,
भाई बहन भी उसे अब तकते नहीं है,
रिश्तेदारों में भी उसे अब कोई पूछते नहीं हैं।
कसूर क्या हैं दोनों का, पता ही नहीं चल रहा हैं,
ऐसा कहते सुना हैं, अरे! दोनों का तीस पार हो रहा है।

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10 NOV 2017 AT 0:38

एक तेरे इश्क में हम अपनी उमर गुजार आए आलम,
और वो अब कहती है जिन्दगी हमें अच्छी नहीं लगती ।

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