_ हिमांशु   (अनुहिम)
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Joined 27 March 2020


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Joined 27 March 2020

कविताएं हमें चुनती है, हम उसे नहीं,
शायद ! इसीलिए हम लिखते वहीं हैं,
जो हम कहते नहीं!

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11 APR AT 11:10

तुम आखिर क्या तलाश रहें हो!
क्यों रोज़ रोज़ नए गड्ढे बना रहे हो,
कुछ न कुछ तो दफ़न ही होगा,
किसी का और कभी का!
पर अब जो मिलेगा वो,
"मेरा कैसे"?
मैं तो आज का और अभी का।

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29 MAR AT 11:19

ईश्वर को ढूंढने की कल्पना कर सकते हैं,
पर जो खोया ही नहीं उसे ढूंढ नहीं सकते हैं!

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25 MAR AT 11:20

होली की ढेरों शुभकामनाएं!

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18 FEB AT 14:24

बाबा!

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कहीं आपकी आस्था का कारण भय तो नहीं। हम आस्था, धर्म और पद्धति इनके बारे में कितना जानते हैं?

विचार कीजिएगा!🙏

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मैं नहीं मानता ऐसा कोई माध्यम जो, मुझे, मेरे ईश्वर से सीधे ना जोड़े।

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25 JAN AT 16:03

राम जो मिल जाए
तो क्या करोगे,
दे सकोगे हिसाब,
या मौन बचाओगे!

मांग सकोगे तुम
नौकरी, घर या स्वस्थ काया!
या कुछ और दिमाग में लाओगे।

हाथ जोड़ खड़े हो पाओगे,
या देखते ही डर जाओगे!

राम जो मिल जाए
तो क्या करोगे,
दे सकोगे हिसाब,
या मौन बचाओगे!

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25 JAN AT 12:14

हमनें खो दिया है तर्क शक्ति,
नहीं करते हैं हम सवाल,
थाली, रोली और फूल के आगे
भला कौन करे बवाल।

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जिसके पास जो होगा वो वही देगा ना!
कुछ और कैसे मिलेगा जब होगा ही नहीं!

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