_ हिमांशु   (अनुहिम)
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Joined 27 March 2020


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Joined 27 March 2020

जो लोग नहीं कह और लिख पाते
मन की बातें,
वो शेयर करते हैं कुछ पढ़ा हुआ अपने दोस्तों को
जो चुप चाप पढ़ते है और कुछ नहीं!

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दुःख कहने के लिए
दुःख में होना जरूरी नहीं।
दुःख में रहा जाता है,
दुःख कहा नहीं जाता।

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30 MAY AT 12:24

सबकी अपनी फिलॉस्फी सबकी
अपनी महाभारत है,
कौन सही कौन गलत
इसी में सबकी महारथ है।

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29 MAY AT 22:27

दुनियां में सबसे ज्यादा दुःख
मां बाप को दोषी करार देना
अपनी नाकामयाबी के लिए,
अपनी ज़िम्मेदारी को छपाने के लिए
अपने जीवन को बर्बाद होने के लिए।

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26 MAY AT 10:54

हमारी सभ्यता ने सीखा ही नहीं
सहेजना!
हमने सिखा तोड़ना,फोड़ना, कुचलना और दफनाना।

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13 MAY AT 23:59

कुछ तो ! किसी का किया है अभी तक,
वरना जो मिल रहा है, वो नहीं मिलता!

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सबका था, तो अपना भी था।

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तुम्हें "अपना" लगता ही नहीं कोई,
कोई तुम्हें "अपना" लगे कैसे!

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बहुत कुछ बिगड़ गया,
जोड़ने की ख्वाइश में!
पहले रिश्तें और अब घर,
किसके भरोसे क्या था,
जिसने परोसा वो ही सन्नाटा।

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मालूम होता, मैं कुछ रहूंगा ही नहीं
आने ही नहीं देता, कहीं से कहीं भी।

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