Kamlesh Pardhi   (इश्क बालाघाटी)
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Joined 19 February 2021


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Joined 19 February 2021
18 FEB 2022 AT 12:14

वादे वफाओं का कर।

मैं उसका दिल तोड़ कर आया हूं।

मसला ए हैं कि, मैं अपना शहर छोड़ कर आया हूं।

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17 FEB 2022 AT 14:08

यू तो मेरी नियत बुरी नहीं।

बस हर चेहरे मै तुम्हें देखता हूं।

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16 FEB 2022 AT 2:19

मै , तो
अपनी तस्वीर भी लगा लूंगा।

बस तुम वादा करो की,मूझसे मोहबत ना होगी।

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9 DEC 2021 AT 11:05

गिरकर अपनी नजरों में।

मैं रोज़ संभलने लगा हूं।

जिन्दगी एक बाजार हैं और मैं बिकने लगा हूं।

किनारे से सटे बेफिक्र खड़ा हु इस कदर।

जरूरत के लिए जरूरत से ज्यादा कर्जे में डूबने लगा हूं।

मेरे ख्वाब भी परे है मेरी हकीगत से।

चैन की नींद कहा मजबूर हूं तो भी सोने लगा हूं।

लफ्ज़ को संवारने लगा हु इन दिनों।

बोलता कम हूं अब कोसने लगा हूं।

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21 NOV 2021 AT 14:00

घड़ी दो घड़ी अब वह पहर ना रहा।

सुना हूं मैं भी किसी के अब काबिल ना रहा।

मिल के बिछड़ने के सिलसिले हर रोज होते हैं।

मसला ए है कि मेरी खैरियत पूछे किसी और से जाते हैं।

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4 NOV 2021 AT 13:45

इश्क तेरी राह में बड़ा संभल के चला था।
खेलने गया था कल और तेरे शहर से हारा था।


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26 OCT 2021 AT 21:53

कभी मुकम्मल तौर पर खरीदा गया मैं भी मशहूर अख़बार हूवा करता था।

बदली तारीख और मैं रद्दी हों गया।

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20 OCT 2021 AT 22:32

किसी को आबाद तो,किसी को डुबाने चली हैं।

ए इश्क है, खेल है, फिर खेलने चली हैं ।

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13 OCT 2021 AT 22:18

आज रंजिशो से फिर मुलाकात होगी।

कल देखना अखबारों में मेरी बात होगी।

निकलना तुम घर से छाता लेकर।

क्या पता कल मेरे गुनाहों की फिर बरसात होगी।

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6 OCT 2021 AT 14:52

राजदार हैं मेरे कितने। मैने हर इक को दिल में बसाया हूं।

कितनी आई और गई कितनी। बस ए शिलशिला तो चलाया हूं।

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