रंग है उमंग का चढ़ा है हर ढंग पर खेल रही रंग से एक गाँव की छोरी है, गुलाल है जो गाल पर लगा है और भाल पर भीग रही रंग में एक गाँव की गोरी है। पास है जो साँस के आस है एहसास भी वनवास है उसी को ही आया नहीं वही, सिंदूर है जो माँग का दूर है सुहाग वही रो रही आज एक गाँव की किशोरी है।। -ए.के.शुक्ला(अपना है!)
उमंग उमंग है कुछ करने की, उमंग है कुछ बनने की, जो सपने देखे है उनको पूरा करने की, समाज में नया बदलाव लाने की, अपना अस्तित्व बनाने की, उमंग है कुछ नया करने की, अपना इतिहास बनाने की, उमंग है कुछ करने की, उमंग है कुछ बनने की।।।
वो ताजगी भरा लम्हा वो पिंजरे का परिन्दा देखता है उम्मीदों को रहगुजर दाना उठाता वो उमंग को खोता नहीं दर्द को सही संजोता वो हरेक डाल पर मोहित है उसे पंख की आजादी याद है कितने उदास चेहरे को बयाँ करता दीवारों में रह रुह की बात करता भरोसा भविष्य के लिए रखता बंद सलाखें भी कितना एहसास जगा देता एक दिन पिंजरा वह गिरा देता है "