Mahendra Modi   (अंतर्लीन)
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•शीलं परम् भूषण।

• भय बिन होय न प्रीत!
Joined 19 February 2019


•शीलं परम् भूषण।

• भय बिन होय न प्रीत!
Joined 19 February 2019
6 OCT 2023 AT 9:14

जब चारों ओर तुम्हारे कुछ मासूम सा नही लगेगा...
कर्कश लगेगा ये दुनियां जहां का शोरगुल,
जब चुभेंगे आंखों को सारे रंगीन नजारे,

मेरी शून्य खामोशी में मिल जाने का,
इयरप्लग लगाकर कोई गीत
चलो साथ में सुनते है कहने का,
अंधेरों में मेरा हाथ पकड़ कर टहलने का,
एक दिन मन करेगा तुम्हारा भी..!


जब हर कोई तुम्हारी सुन ने से ज्यादा अपनी कहेगा..
और खामोशी छोड़ो, शब्द भी नही समझेगा..
जब खलेगी भरी महफिलें भी तुम्हें..

"सुनो ना..एक बात कहूं..
पता है आज क्या हुआ"
कहकर,
किसी कोने में शांति से गले लगने का,
एक दिन मन करेगा तुम्हारा भी..!


हां..देखना..
चुभेगी तुम्हे अपनी दूरियां उस दिन
और खुद को भूल कर..
मेरी तरह ही मुझमें समा जाने का,
एक दिन मन करेगा तुम्हारा भी...!!

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3 JUL 2023 AT 0:45

Once I used to write here a lot of things keeping in mind that "Vo Padh Payegi"
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Now I don't write anything bcz "Vo Padh Legi" 💔

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22 JUN 2023 AT 0:15

Who am I ?
"An Empty Actor"

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12 NOV 2022 AT 17:12

अकाल पड़ा, दुकाल पड़ा,
घनी बरसातों में सौंधी तो हुई,भीग कर जमी..
मगर बदस्तूर जारी रही प्यास, पाकर भी नमी प्रत्याशा में..!


द्वंद- पलड़ें झेले,
भूजबलों को परिवर्तन मिले,
चेतन अवचेतन परस्पर युद्धरत रहे स्मृति पटल पर
कि पाकर अमृत-कलश क्यों विष की कमी अभिलाशा में..!

बदले है साये सारे,
बंजर हुए केशर क्यारें अमावस-अंधेरी निराशा में,
घायल, विक्षिप्त होकर भी किन्तु
मन नहीं मरा, पूनम के चांद की आशा में..!!

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15 DEC 2021 AT 17:27

हाँ..!
अलग है..
मेरा मज़हब
और..
यही है..
मेरे खुदा की इबादत..!

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15 DEC 2021 AT 17:17

Justify krna hi ho to har bat aur bure se buri chij ko bhi kiya ja skta h..!

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2 DEC 2021 AT 22:33

जिस बात पर खुद को भी नही समझा पातें तो भी दूसरों को समझाते है इंसान..!

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28 NOV 2021 AT 16:57

किसी पर पहला वार नही करना चाहिए।
यह नीति कहती है।
और..
सामने से कोई पहला वार कर दे तो?
..तो प्रतिरोध ऐसे प्रहार से करना चाहिए कि विपक्षी तहस-नहस हो जाए.!
यह युद्धनीति कहती है।

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18 NOV 2021 AT 12:57

बहुत लंबा फ़र्क़ है शासन का प्रभावी उपकरण होने में
और राजनीति का अखाड़ा होने में!
किंतु निष्ठुर राजनेताओं और चेतनाविहीन जनता,
दोनों ने ही शासन के प्रभावी लोकतांत्रिक उपकरणों को
स्वार्थसिद्धि हेतु राजनीति के रंग में रंग दिया है।
ईमानदारों की मूक चीखें बहरों के जमीर को जगाने की
निष्फल कोशिश में हज़ारों दफे ढाप दी गयी है।

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18 NOV 2021 AT 0:57

हज़ारों मर मिटे और लाखों तैयार है..
सीमा पर मर मिटने को,

अब कोई देश के भीतर गुमनामी में शहीद होने को तैयार हो तो बात बनें..!!

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