अकाल पड़ा, दुकाल पड़ा,
घनी बरसातों में सौंधी तो हुई,भीग कर जमी..
मगर बदस्तूर जारी रही प्यास, पाकर भी नमी प्रत्याशा में..!
द्वंद- पलड़ें झेले,
भूजबलों को परिवर्तन मिले,
चेतन अवचेतन परस्पर युद्धरत रहे स्मृति पटल पर
कि पाकर अमृत-कलश क्यों विष की कमी अभिलाशा में..!
बदले है साये सारे,
बंजर हुए केशर क्यारें अमावस-अंधेरी निराशा में,
घायल, विक्षिप्त होकर भी किन्तु
मन नहीं मरा, पूनम के चांद की आशा में..!!
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