अंधेरा अंधेरे से जब टकरायेगा,
बन फुटकर उजाले वो नज़र आएगा।-
इक उम्र उजालों को तरसते रहे हैं हम,
इश्क़ की लौ में यूँ जलते रहे हैं हम।-
इन आंखों का क्या है ?
मन की आंखों से देखोगे
हर तरफ उजाला ही पाओगे
क्योंकि रोशनी मन की होती है सच्ची
सच होता है जो मन दिखाता है वही
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अंधकार की गठरी तोड़
अब तो रोशनी से नाता जोड़
काले बादलों की वेला छोड़
प्रकाश की ओर खुद को मोड़
उस सा सूरज का तेज बन
नाकामियों को ऐसे पीछे छोड़
मन की खुशियों का ताला तोड़
भीतर के दर्द को अब छोड़
सब मुमकिन इस जहां में होगा
तू एक बार तो अपनी बन्द गुफा में
उस ख़ुशी के जुगनू को तो छोड़
सारे जहां में मुस्कान बनाये रखे
और अपने अंदर तू खुद को दबाये रखे
इस अंदाज को अब तू बिलकुल छोड़
अब तो उजाला मन में करने की
वो कशिश सी तू कर होड़
सब खूबसूरत सा महकेगा ये मन तेरा
अपने मन का वो बन्द मायूसी का ताला
धीरे ही सही बस तोड़
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उजाले की ही आड़ लिये में अंधेरा खंगालते चलता हु
अंधेरो से निजात पाने में उजाला साथ लिये चलता हु-
न फ़ितरत बदली उसने न शान बदली
न ज्वाला बदली न खुद का मान बदला
न वक़्त बदला उसने न ही काम बदला
न जगह बदली उसने न ही नाम बदला
न धैर्य बदला न ही अपना तमाम बदला
न आश्रा बदला उसने न आसमान बदला
न सुबह बदली अपनी न ही शाम बदली
न उद्देश्य बदला अपना न मकान बदला
चलता दिन नये से ख़्वाब बोता जाता है
बिन रुके जग में उजाले सँजोता जाता है-
किसी की ख़ामोश परछाई मत बनना तुम
अच्छे न बन सको तो बुराई मत बनना तुम
सच्चे रह सको तभी तक साथ देना उसका
वरना बेवजह उसकी दुहाई मत बनना तुम
इज्ज़त कमा ली है तो दौलत भी कमा लोगे
झूठ बोलकर पाप की कमाई मत बनना तुम
मदद् करने से सबको खुश़ी ही होगी अक़्सर
साथ ना चल सको तो आशनाई मत बनना तुम
भरोसा टूटता है तो सबको महसूस होता है
अंदर से धोखा बाहर से भलाई मत बनना तुम
जो भी करना उजाले की हिमायत में ही रहना
दूसरों को दुख देने वाली महंगाई मत बनना तुम
लोग मिलते हैं और बिछड़ जाते हैं "आरिफ़"
अच्छे रिश्तों पर जमी हुई काई मत बनना तुम
ज़िन्दगी "कोरा काग़ज़" है और ऐसी ही रहेगी
ज़रा सा ना बह सके वो रोश़नाई मत बनना तुम-
मेरे तक़दीर का कोई.. कभी किनारा ना हुआ,
बदलते रहे चेहरे पे चेहरे.. कोई हमारा ना हुआ..
है तपिस मुझमें इतनी.. कि सारा जहां जला दूं,
बस अपने ही घर में.. मुझसे उजाला ना हुआ..!
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उजाला साथी बन जाता है,
पर वो एक चादर ओढ़े आता है !!
मानो न मानो, मेरी या तुम्हारी
ये लिखी पंक्तियां हैं, आप बीती हमारी
विकल्प कहां देती है ज़िंदगी कभी
हर क्षण लगे जैसे आरंभ होगा अभी
एक भोर जिसकी प्रतिक्षा जाने कब से है
विश्वास की अपेक्षा हमें सब से है
रूठने मनाने के भंवर में सिमटा हर सेतु
जो मुझ से, तुझ तक जाता है।
सोच समझ के बवंडर में उलझते हैं पहर
अच्छा वक्त कहां, आसानी से आता है !!-