QUOTES ON #ईमान

#ईमान quotes

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21 FEB 2019 AT 8:49

आज फिर हवा का रुख बदलते देखा
आँखो में नया प्रतिशोध पलते देखा,

दबी देखी निशानियाँ हमने अपनों की
बहते आँसुओं से चिंगारी निकलते देखा,

दिल और आग हो गया जब हमने
धुंए में शहर-ओ-शहर मिलते देखा,

कसूर कोई नहीं था मासूमों का लेकिन
बलि आतंकवाद की उनको चढ़ते देखा,

आज फिर उस राख से धुआँ उठता है
खुशियां थी जहां चिताएं भी जलते देखा,

कर लेते हैं लोग मौत पर भी राजनीति
यहां बाद तबाही के हाथ मलते देखा,

वो ज़हर बो रहे हैं और ज़हर ही काटेंगे
देखा जब भी उनको ईमान बदलते देखा !

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29 MAY 2020 AT 16:36

कुछ तो मेरे सीने में भी ईमान रहने दो,
काफ़िर न मैं मोमिन मुझे इंसान रहने दो।

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20 MAY 2020 AT 23:03

जिंदगी से अलग दिखती है तस्वीरे
नक़ाब में आदमी छिपता नहीं ।

गुरूर के साए में छाव भले हो
ख़ुर्शीद पे बादल टिकता नहीं ।

जमीन से जुदा लगती है जड़े
बाज़ार में ईमान बिकता नहीं ।

ख्वाबों की दुनिया पे ऐतबार भले हो
हकीकत से ख्वाब मिलता नहीं ।

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27 OCT 2022 AT 13:04

एक लड़की की ची़ख सुनता कौन,
सब देखते है तमाशा और ज़माना हो गया मौन।

तकलीफ इसकी मदद को पुकारती,
जिंदा रहकर हर दिन खुदको मारती।

गलती करे कोई और सजा मिले इसे,
अपनी इज्जत पर दाग के किस्से सुनाए किसे।

अपने घर में बनकर रहती मेहमान,
शर्म, लज्जा, सादगी ही है क्या इसकी पहचान।

मजाक बन रहा इसका ईमान,
दरिंदे बन रहे कुछ इंसान।

क्यों करते इसकी इज्ज़त को बदनाम,
औरत का अपमान करना ही है क्या कुछ जालिमों का काम।

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2 JUL 2020 AT 7:28

दिया है जो जख्म कुछ अपनों ने, अब वो मिटता नहीं है।
नकाब नहीं चेहरे पे सब कहते, पर वास्तविकता नहीं है।

कुछ अनकहे राज खोलनें हैं, इन मतलबी रिश्तों के
कलम मेरा सब जानता है, पर कभी लिखता नहीं है।

खरीदने आये हो मुझे तुम, ये चंद मुनाफे गिनाकर
ये ईमान मेरा पुरखों का है, बाज़ार में बिकता नहीं है।

यूँ तो "कहने के लिये", हर कोई साथ खड़ा हैं मेरे,
जब दर्द आता है हिस्से में, तो कोई दिखता नहीं है।

क्यूँ करने लगे हो बुराइयाँ, उस शख्स की अब भरी महफ़िल में
जलन हो जिसे तरक्की से गैरों की, वो इंसान अब टिकता नहीं है।

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8 MAR 2019 AT 21:54

अपने ही बच्चों से डर लगता है बहुत
कभी पूछ बैठे तो ईमान क्या बला है।

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23 MAR 2019 AT 11:56

मुफलिसी का मारा,चेहरा बेनकाब किये फिरता हूँ
बदसूरत सा शख्स हूँ, बस ईमान लिये फिरता हूँ।।

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30 MAR 2020 AT 9:41

'मैं' से जब गुज़रा मैखाना , जागा कैसे 'ईमान' नहीं
जो न गुज़रा इन 'राहों' से , ऐसा कोई 'इंसान' नहीं

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20 APR 2021 AT 7:52

क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे !

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22 AUG 2020 AT 20:44

हार जाते हो हर बार आकर ईमान पर,
फिर क्यूँ ये ख़ता बार-बार करते हो।
आने,चार आने क्या बढ़े बाज़ार में,
बारी-बारी तुम तमाम बिकते हो।

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