न तेरा इज़हार, न ही मेरा इंतजार लिखूंगी,
इश्क़ में तेरा जुनून और मेरा सुकून लिखूंगी।
गुलाबों की महक तो सबने लिखी होगी,
मुझमें तेरा इत्र बन कर महकना लिखूंगी।
इन फ़ासलों को लिखने का क्या फायदा,
मेरी सांसों में तेरा बसर करना लिखूंगी।
बरसों तक चलेगी ये अधूरी कहानी हमारी,
मैं, मेरे अंत से तुम्हारी शुरुआत लिखूंगी।
-
वो मुझमें पसीने की महक सा घुला है
यूँ इत्र की शीशी में क्या ढूंढते हो...
ए मेरे यारों मेरे हर जज़्बात में सिर्फ वो है
यूँ चंद लफ्ज़ों में क्या ढूंढते हो...
मेरे चेहरे की ये चमक उसके साथ से है
यूँ चाँद की चांदनी में क्या ढूंढते हो...
मैं नहीं उसका साया जो छोड़ दूं साथ रातों में
यूँ वक़्त की मेहरबानियों में क्या ढूंढते हो??-
तिरे होंठों पर तबस्सुम का आ जाना
जैसे कि भँवरे का फ़ूलों में समा जाना
तिरी ज़ुल्फ़ों से बूंदों का टपक जाना
जैसे फ़ूलों पर श़बनम का छिड़क जाना
तिरे इन गालों पर लाली का छा जाना
जैसे छूई-मूई का ख़ुद ही में सिमट जाना
तिरी आँखों में मस्ती का आ जाना
जैसे इक बच्चे का खिलखिला जाना
तिरे चेहरे पर श़र्म का जब आ जाना
जैसे लैला को मजनूँ का मिल जाना
मिरे होंठों पर तिरे नाम का आ जाना
जैसे मिरे बदन में इत्र का समां जाना
तिरे हाथों का मिरे हाथों में आ जाना
जैसे "कोरे कागज़" पर नज़्म लिख जाना।-
शब्दो से चित्र बनाता हूँ......
जज्बातो से मित्र बनाता हूँ....
जिस की खुशबू कभी कम न हो,
तजुर्बे से ऐसी इत्र बनाता हूँ..☺️☺️☺️-
मुनाशिब नहीं हमें, वो पुष्पों के इत्र, जो,
चंद मिनटों के लिए, महकते हैं.......,
मालूम नहीं तुम्हें, तेरे साथ होकर, हम!
इन इत्रों से भी, खुबसूरत महकते हैं.......।।-
अपनी उपयोगिता को 'अभि' वो
'मासूम' कुछ इस कदर से दर्शाती है|
'गुलाब' हो कर भी वो ख़ुद 'गुलाब'
लगाकर 'उपवन-उपवन' महकाती है|-
अपने ज़ेहन में मुझे रखकर
तुम घर से ना निकला करो
ज़माने भर को ख़बर हो जाती है
मैं तुम में इत्र की तरह महकता हूँ
- साकेत गर्ग-
आज बाज़ार में इत्र के दाम गिर गए
जब बारिश ने मिट्टी का माथा चूम लिया
Aaj bazaar mein itra ke daam gir gaye
Jab Barish ne Mitti ka maatha choom liya-
लाख लगा लो इत्र मुझ से दग़ा कर के
यार किरदार तेरे से मुझे अब बू आती है-