कहने को तो चाय सिर्फ एक पेय है दूध,चीनी,
चायपत्ती का मिश्रण है पर ना जाने क्यों मैंने जब भी इसके बारे में सोचा तो पाया कि ये एक कप चाय में कितना आनंद, कितना प्रेम और अपनापन है। आप खुद ही कभी गौर कीजियेगा तो पता चलेगा कि ये एक कप चाय कभी भी अपने अंदर समाहित किसी वी वस्तु की खासियत को कम नहीं होने देती जबकि अन्य पेय पदार्थों में अक्सर एक स्वाद दूसरे स्वाद पे हावी ही दिखता आ रहा है,चाय ने हमेशा ही अपने साथ रहने वालों को बराबर का सम्मान दिया फिर उसमें चाहे अदरक हो,तुलसी हो,चीनी हो या दूध हो। एक ही पेय में होने के बाद भी ये सब अपनी रंगत नहीं खोते...चाय ने हमेशा ही कोशिश की है कि सिर्फ मेरी ही वाह-वाही ना हो अपितु मेरे साथ रहने वाले भी मेरी ही तरह सम्मान पाएँ...एक चाय के कप में अगर इतना समर्पण हैं तो हम मनुष्य होके थोड़ा तो अपने काम में समर्पित हो ही सकते हैं..और जीतने का या सर्वश्रेष्ठ कहलाने का सबसे खूबसूरत तरीका यही तो है कि सिर्फ मैं ही जीतूं इसमे कोई मज़ा नहीं,मज़ा है सबके साथ जीतने में सबके साथ सफल होने में....और मैं आज कल के फिलोसोफिकल एरा में एक चायवादी हूँ.........अमूमन एक चायवादी की यही तो पहचान है
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