ख़र्च तेरी रातों पर अपनी ज़िंदगी करते
हम चराग़ होते तो हम भी रौशनी करते
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न तुझको सब्र ओ क़रार होगा न ख़ुद पे कुछ इख़्तियार होगा
ये इब्तिदा है अभी तो ऐ दिल ये हाल लैल-ओ-नहार होगा
(रात-दिन)
نہ تجھ کو صبر و قرار ہوگا نہ خود پہ کچھ اختیار ہوگا
یہ ابتدا ہے ابھی تو اے دل یہ حال لیل و نہار ہوگا
Vibha Jain / @ek_khwab_si_ladki
*Ghazal in the caption*
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तमाम उम्र गुज़ारी ये आरज़ू करते
टुक इक निगाह वो इस ओर भी कभू करते
تمام عمر گُزاری یِہ آرزو کرتے
ٹک اک نگاہ وہ اس اور بھی کبھو کرتے
- विभा जैन 'ख़्वाब' / 'وبھا جین 'خواب
*Ghazal in the caption*
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वहम-ओ-गुमाँ से भर गया हर साल की तरह
ये साल भी गुज़र गया हर साल की तरह
इस साल से उमीद थी दिल को सुकून की
मायूस ये भी कर गया हर साल की तरह
Vibha Jain
@ek_khwab_si_ladki
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उम्र भर कौन भला रोये किसी को अब तो
लोग मिलते हैं बिछड़ते हैं भुला देते हैं-
// ग़ज़ल //
अब तो चेहरा भी तेरा याद नहीं आता है
होश में क्यों दिल-ए-नाशाद नहीं आता है
वो किसी भूले हुए नग़्मे की धुन की मानिन्द
ज़ेहन में है तो मगर याद नहीं आता है
ज़िंदगी कोई कहानी नहीं सुन ओ पगली
दर-हक़ीक़त कोई शहज़ाद नहीं आता है
अब न शीरीं कोई दिखती है सर-ए-राह-ए-इश्क़
और नज़र अब कोई फ़रहाद नहीं आता है
हो के आज़ाद जियूँ ये उसे मन्ज़ूर नहीं
जान लेने पे भी सय्याद नहीं आता है
- Vibha Jain
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वो किसी भूले हुए नग़्मे की धुन की मानिंद
ज़ेहन में है तो मगर याद नहीं आता है-