दिल.., दिल से ही आहत बहुत है
मग़र मुहब्बत की.. चाहत बहुत है,
रखे तो थे आंखों के बंद कमरे में आँसु
पऱ दरीचों से..सिसकियों की आहट बहुत है,
वो जान भी ले तो उफ़्फ़ तक ना करूँ मन
उसके पहलु में.. जन्नत-सी-राहत बहुत है,
वो हँस के जख़्म कुरेदे औऱ मैं रोऊँ..नां..न.नां दिल
दवा दर्द की तो.. उसकी इक.. मुस्कुराहट बहुत है,
दिल.., दिल से ही आहत बहुत है..!-
इक़ दिन यह जंगल विलुप्त हो जाएंगे
यह शहर धूमिल हो जाएंगे...
यह पंछी झील नदी नाले साग़र
इनका भी खो जाना तय ही होगा,
...यह ब्रह्माण्ड यह सूरज चाँद तारे
यह कुछ दिन शायद अपना वजूद बनाये रखेंगे....
तुम्हारे प्रेम का जब अंत हो सकता है तो
फ़िर प्रिय इस सृष्टि का अस्तित्व भी संशय में है,
मस्जिद की अज़ान कानों में चुभती है
औऱ जाने क्यूँ मिथ्या सी लगती है मन्दिर में जलती ज्योति भी...
....शायद पाक ह्र्दय जब छलनी होता है
तब आस्था के सारे दरवाज़े बंद हो जाते हैं...,
मन में इक़ साधुवाद की मंशा होती है
मुझे तो अब मेरे होने पे भी शंका होती है!!-
कभी-कभी जब मुड़कर देखते हैं,
तो लगता है कुछ छूट गया है...
जब रो देते हैं और कारण नहीं समझते,
कोई बात चुभती है और कह नहीं पाते,
एक मुस्कुराहट से जब सब छुपाने लगते हैं,
तो लगता है कुछ छूट गया है...
वो पुराने सपने, पुराने ख्याल जब याद आते हैं,
मन मसोस कर जब खुद ही सब मज़ाक बताते हैं,
स्वयं का वो तेज जब निस्तेज पाते हैं,
तो लगता है कुछ छूट गया है...
तथाकथित दौड़ में जब शामिल होते हैं,
भेड़ चाल में जब खुद को खो देते हैं,
अपने आपमें जब इतना बदलाव पाते हैं,
तो लगता है कुछ छूट गया है...!-
नारी कोई खिलौना नहीं ,काश! तुम यह जान पाते
नारी से ही नर है इसे भोग्या सिर्फ ना समझतें
यह जघन्य कुकृत्य,रतिलक्ष्य आखिर क्यों करते
उन्माद में नारी अस्मत ही तुम क्यों हो लूटते ?
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जो आग 🔥 कुछ नेताओं ने लगाई है,
उस आग से..... सियासत..... उनकी भी जलेगी।
पप्पू +पप्पी +बौना +टोंटी
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ज़हन में ख़ार लिए फिरते हैं इतने
सांसें छलनी और ज़िस्म घायल है...
प्रीति-
आहत नहीं वो
वो छलनी देह
देह नहीं आहत
आहत वो हृदय
हृदय जो विदीर्ण
विदीर्ण करें शब्द
शब्द बाणों द्वारा
द्वारा ईश राहत
राहत दे अपना
अपना दे न ज़ख्म
ज़ख्म भरे ईश
ईश कृपा बने
बने हृदय न आहत
आहत कौन?
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तुम्हारे देख लेने से , मिला करती हमें राहत
हमारी इन निगाहों में, नज़र आई न क्यूँ चाहत
जरा सोचा नहीं पल भर,किसी पे क्या गुजरती है
उदासी दे गए ऐसे , किया कितना हमें आहत-