कभी-कभी जब मुड़कर देखते हैं,
तो लगता है कुछ छूट गया है...
जब रो देते हैं और कारण नहीं समझते,
कोई बात चुभती है और कह नहीं पाते,
एक मुस्कुराहट से जब सब छुपाने लगते हैं,
तो लगता है कुछ छूट गया है...
वो पुराने सपने, पुराने ख्याल जब याद आते हैं,
मन मसोस कर जब खुद ही सब मज़ाक बताते हैं,
स्वयं का वो तेज जब निस्तेज पाते हैं,
तो लगता है कुछ छूट गया है...
तथाकथित दौड़ में जब शामिल होते हैं,
भेड़ चाल में जब खुद को खो देते हैं,
अपने आपमें जब इतना बदलाव पाते हैं,
तो लगता है कुछ छूट गया है...!
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