ज़िन्दगी के सभी दुखो को सहकर जब तुम्हारी बाहों का आशियाना मिला....... तब ज़िन्दगी के हर दुख से ऐसे अनजान हो गई मानो तुमसे मिली खुशियों ने मेरी किस्मत ही पलट दी हो पर दिनों दिन तुम्हारे बदलते व्यवहार ने हमें तोड़ के रख दिया..... आंसुओ को छुपाना कब सीख लिया पता ही न लगा तुम्हे अंदाज़ा भी न हुआ कि कब मेरी मुस्कुराहट की जगह आंसुओ ने ले ली जब तुम्हे एहसास हुआ तब तक देर हो चुकी थी हम तुम्हारी ज़िन्दगी से कब चले गए तुम्हे पता भी न लगा..... फूट फूट कर रोना चाहती थी पर रो ना सकी क्योँकि उस दिन हमने आंसू छुपा लिए.......
उस आशियाने को क्या नाम दूँ जो तुमने आपने हाथो से बनाया है जिसके लिये तुमने एक खूबसूरत सपना अपनी आंखों में सजाया है ये तो बताओ कैसे आगाज़ करुं उन लम्हो का जब तुमने सब भूला कर अपना सारा वक़्त इसी में लगाया । आज मुक्कमल होता हुआ दिखा तुम्हारा ये सपना । जैसे तुमने माना हो उसे जहान अपना।