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स्वतंत्रता एक शब्द मात्र नहीं है,इसमें समाहित है-
असंख्य भावों की मंदाकिनी, वीरता का स्पंदन,
करुणा का रुंदन, कुछ अमर गाथाओं का वर्णन।
वर्षों पूर्व हम अंग्रेजों की गुलामी से आजाद होकर,
एक नए युग की कल्पना में तत्पर हुए।
तन को स्वतंत्रता प्राप्त हुई पर क्या मन ने स्वीकारा इसे?
मन पर बेड़ियां लगा कर भी कैसे मनाते हो तत्व मात्र की स्वतंत्रता?
द्वेष,घृणा,लालच,दुराचार भीतर रखकर मात्र झंडे फहराने और नारे लगाने को मैं स्वतंत्रता की श्रेणी में नहीं रखती।
स्वतंत्रता सिर्फ एक दिन का जश्न,पुस्तको में पढ़ाया गया शब्द नहीं है।
यह मन का भाव है, मन से स्वीकारें इसे।
जय हिंद🇮🇳
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