Ragghuraj Singh Ranawat   (Raghuraj Singh Ranawat)
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Joined 19 March 2018


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Joined 19 March 2018

पिता वो वृक्ष है जिसकी छत्रछाया
में उसकी संतति का बड़ी बेफिक्री से अभ्युदय होता है...

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14 JUN AT 23:16

मैं
खुश
बहुत
रहता था
नादान हुआ
करता था यही
कारण है जिंदगी
खुशनुमा रहती थी...

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14 JUN AT 23:03

बहुत हसरत है मुझे उनके दीदार की
काश इस शहर की रात में यह ख्वाब नसीब हो जाए...

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10 JUN AT 21:59

कौन कहता है विशुद्ध प्रेम अब नहीं होता
विशुद्ध प्रेम हमेशा रहता है फर्क बस इतना
है कि इसे करने और निभाने वाले कम होते हैं...

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कुछ दिली तमन्नाऐं वक्त पर पूरी हो जाएं तो बेहतर हैं
वरना ताउम्र उनकी कसक बरकरार रह जाती है...

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....

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It's becomes materialistic...

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अगर आप दूसरों को खुश करने के लिए जी रहे हैं
तो ये तय है कि आप अपनी खुशियों का दमन कर रहें हैं...

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प्रेम की सबसे खूबसूरत बात यह है कि इसे कोई बेच या खरीद नहीं सकता...
हां, इश्क ,मोहब्बत बेशक बाजारों में बिकते होंगे...

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प्रेम जीवन का आधार है
निर्भरता नहीं
इसलिए आधार को सशक्त बनाकर
निर्भरता निर्भर रहने वाली चीजों पर की जाए
जिससे बेहतर जीवन का निर्वाह हो सके...

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