एक सच बोलूं
एकतरफा झूठ सा ।-
हजारों
ग़म खुशी
अच्छे बुरे
दिन रात
शौक़ ए उल्फ़ते ज़िन्दगी के
पर
गिने तो चार ... read more
सोचता हूँ
कभी
कि कुछ मिठास
लिखू और
रख आऊँ
फूलों पर
कि कोई
भंवरा आए
और ले जाए चुनकर उसे
छत्ते तक
और पूरी दुनिया
चख ले उसे
पर
उसी पल है
ये लगता
शायद
मुझसे पहले ही
रख गया कोई
कड़वाहट वहां।-
मंज़िल
एक कठिन रास्ता
जिसकी ओर सब चले कुछ बैठे आधे राह में तो
कुछ तकलीफ़े देख
वापस चले
जो पहुंच गये
था उन्हें पता
कहाँ मंजिलें उन तक चले
गर इंसान है तू खुद
फिर क्यों डरता इंसान से
तुझे पता है
तू अलग सबसे
तो क्यों हर घड़ी खुदको
तोलता है सबसे
दो राह तो दो चाह भी पास तेरे
या तो
सुकून की चादर ओढ़ तू सो जा खो जा कहीं
और पा ले पकड़ ले सपने अपने
जो महज़ है बस खयाली सपने
या तू हकीकत में हो खड़ा
मुँह से
नींदी सपनों की काई हटा
और शीशे में देख ख़ुद को कल की परछाई में
पहले
ज़िद को भर ले सासों मैं
दिमाग़ को दौड़ाना सीख
जो सीख ले ये दौड़ना
तो चाहतों के पर खोल और
उड़ चल मंजिलों मैं-
बिखरे रिश्ते
सिमटे सोच
खोई इंसानियत
थोड़े सच
और
ढ़ेर सारे झूठ के साथ
मैले आइने में
तैयार हो रहा है
नया समाज।-
छलावे की बढ़ती ठंड मैं
जमी खुशी
सिसकती यादें
कपकपाते सच
और
अकड़े रिश्तों
के बीच
इक
उम्मीद का प्याला
है जो अब भी
गरम है।-
जनाब
इज्ज़त की नुमाइश तो
फ्री की है यहाँ
बस
इंसाफ़ की कीमत है
एक मोमबत्ती।-
राज है उसका
आज भी
हर नया दिन
फिर भी
रोज उड़ता है वो परिंदा
और लौट आता है घर रात।-
हजारों
ग़म खुशी
अच्छे बुरे
दिन रात
शौक़ ए उल्फ़ते ज़िन्दगी के
पर
गिने तो चार दिन ।-