राज्य एक अवधारणा है
भू-भाग के विस्तार की
सरकार के अधिकार की
जनता के सहकार की
राष्ट्र एक भावना है
सर्वधर्म सम्भाव की
संस्कृतियों के जुड़ाव की
विश्वास और सद्भाव की-
Manoj muntashir..Inspiration ❤
Civil services.. Vision
Future lyricist.. ... read more
बंदिशें मोहब्बत में आजमातें रहें हैं जो हरदम
खुद के ही कफ़स मैं कैद उनका नाम गुम जाएगा-
मुख़्तलिफ़ है मोहब्बत और नफरत की इंतहा
एक मिटना जानती है, एक मिटाना जानती है-
जैसे ही यह शाम वादियों में ढलती होगी
तुमको मेरी कमी तब जरूर खलती होगी
भले ही हो गए हो तुम महफिलों के आदी
मगर दिल में कहीं तो तन्हाई पलती होगी
चांद दरीचे पर जब भी उतर आता होगा
रातें आंखों में ही करवटें बदलती होंगी
तुम्हारी यादों में लिखी नज्मों का असर ऐसा है
मेरे लफ्जों की नमी तुम्हारी आंखों में भी जलती होगी
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ठहरी हुई नदियों पर
ना जाने किसके निशान हैं
गर्म रेत के टीलों पर
ना जाने किस के मकान हैं
सूरज दिनभर जलकर
आसमान में छिप जाता है
रात अंधेरा बुझ कर
नई सुबह में घुल जाता है
वक्त का पहरा घेरे है
इस सांसारिक वितान को
झुठलाती हैं ये घटती घटनाएं
हर भौतिक पहचान को-
ईश्वर को स्वीकारना या नकारना
हमारे संस्कारों से पोषित होता है
अपनी पृष्ठभूमि के अनुसार
हम बना लेते हैं ईश्वर की अवधारणा
इस अवधारणा का प्रतिपादन हम
पूर्वाग्रहों से युक्त होकर करते हैं
अपनी रूचि के मुताबिक ईश्वर को
सृजित या विनष्ट करते रहते हैं
परंतु ईश्वर तो वह यथार्थ है
जिसका अन्वेषण केवल तभी संभव है
जब सभी विचारों का समापन हो जाता है-
मन उद्दीपन का वह स्वरूप है
जो ज्ञात-अज्ञात में भटकता रहता है
ज्ञात को पकड़ना
हमारे अनुभवों से सिद्ध हो सकता है
परंतु अज्ञात को पकड़ना,
अज्ञात में ही भटकने के समान है
मन फिर भी खोजता है अज्ञात को
यह हमारे मन की,
मौन और रिक्तता पर विजय का आह्वान है-
मेरी सांसों में जो बाकी है तेरे नाम की रवानी
बस यही है मेरे वजूद की अब आखिरी निशानी
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ए ख़ुदा फिर से मेरी तकदीर लिख दे
हाथों में मेरे इश्क़ की ताबीर लिख दे
जिंदगी के फलसफे चाहे अधूरे ही रहें
मौत की मुकम्मल मगर तस्वीर लिख दे
जख़्म बेवफ़ाई के मुझे शादमानी ही लगें
हर बज्म़ में मेरी यही तहरीर लिख दे
इश्क़ में हारकर 'राहत' जो टूटा नहीं कभी
इस पन्ने पे उसके नाम इक नज़ीर लिख दे
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इक लम्हा-ए-मुख़्तसर मेरी आंखों से मिला दे
ताउम्र तेरे ख्यालों में जिंदा रहेंगे हम
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