यूँ तो कोई वजह नहीं
मेरे मुस्कुराते रहने की
पर तेरी भोली सूरत देख
मैं अक़्सर ख़ुश हो जाता हूँ
यूँ तो मेरी औकात नहीं
रईस दुनिया के सामने खड़े होने की
पर मेरे हाथ में तेरा हाथ आते ही
मैं सँसार में सबसे धनी हो जाता हूँ
यूँ तो चलती हुई राहों की आदत है
चलते चलते मुझमें ठहर जाने की
पर तेरी एक झलक से माही
मैं हवाओं में बहकर तुझसा हो जाता हूँ
यूँ तो तारों की टिमटिमाहट से
आहट होती है तेरे मुस्कुराने की
पर रातो में नींद खुलते ही
मैं तेरे जैसा ईद का चाँद हो जाता हूँ
यूँ तो हँस खेल कर करती हो कोशिश
अक्सर "अमर" को हँसाने की
पर जब भी आँखों मे तेरे आँसूं आती है
मै तेरे सामने बैठ तेरा आईना हो जाता हूँ-
ज़िन्दगी में आँसुओं का ग़म नहीं
मौत को क्या रास आए हम नहीं
चल सको तो चल ही देना साथ में
इश्क़ में तो मंजिलें भी कम नहीं
वाक़िआ मैं क्या सुनाऊँ इश्क़ का
रो रहा हूँ आँख भी अब नम नहीं
बद-नसीबी कह रही है सुन भी लो
क्या दुआओं में ज़रा सा दम नहीं
शहर 'आरिफ़' का नहीं है इस तरफ़
हम-सफ़र क्या बस वही है तुम नहीं-
सफ़हे पे गिरा उस एक आँसू का वज़्न इतना था
तेज़ हवाओं में भी वो पन्ना फड़फड़ाता रह गया
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जिसकी अलग है परिभाषा!
जब भी मन होता है भावुक।
यह आँखों से बहने लग जाता !-
बहती है पवित्र गंगा धरातल से तो कभी पलकों तले
अशुद्ध मन को शुद्व करती जैसे बहती गंगा पावन भूमि तले
विरक्त हो कर भी सबसे महादेव के हैं जटाओं में बसती
कभी माँ बन कर आँसू पोछती तो बह जाती कभी पलकों तले-
...वो क्या समझेंगे,
वो तो सिर्फ रुलाना जानते है ।
बेवफाई की आग को..वो क्या समझेंगे,
वो तो उस आग को लगाना जानते हैं ।।
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दिल पढ़ नहीं पाता
दिल में है जो दर्द जुबां पर
क्यों नहीं आता
रात है काली है स्वप्न हम
को डराता
अब कोई अपना बचाने
क्यों नहीं आता
बह गया दरिया मेरी
आंखों के सागर से
जो याद थी उनकी
भुलाना नहीं आता
पढ़ सको तो पढ़ लो तुम
ज़िन्दगी की परिभाषा।
अश्कों को छुपाए हम सुनहरा दिन नहीं आता-
एक दरिया मैने भी
मन मे छिपा रखा है
दिखता नही पर अक्सर
वो फुट पड़ता है मेरे
सुख दुख में!!-
बाहर निकाल दिये वो सारे सपने मैंने
जिनमें सातों जन्म तक सिर्फ मेरा बनकर रहने के वादे किये थे तुमने !!-