तिरती रही नज़रें चढ़ता हुआ तुम्हें देखकर
सूरजमुखी कबतक रहूं मैं रातरानी हो गई!
प्रीति-
4 JUL 2019 AT 9:46
3 JUN 2020 AT 14:33
पत्थर को घमंड था, ताकत का,
एक पत्ते के दबाव से समंदर में डूब गया।-
27 SEP 2018 AT 18:27
ज़िन्दगी का ज़ायका करवट लेते ही बदल जाता है
बुलंदियाँ छूते ही इंसान इंसानियत क्यों भूल जाता है
जो कभी पतझड़ो में भी गुले ए गुलज़ार हुआ करते थे
अब बहारों में शज़र से गिरते मायूस पत्तों सा बिखर जाता है
चिंगारी जो कभी आग सी धधकती थी सीने में ज़माने को बदलने की
आज चट्टानों के सामने भी घमंड से अपना ऐब दिखाता है
टूटता है एक दिन गुमान कांच के टुकड़ों में बिखर कर
जब आईना तेरी बनावटी सूरत नही अस्ल सिरत दर्शाता है-
15 FEB 2020 AT 10:15
मृषा मुरेठा बंधे
शीश हुआ चौगुना
दर्प बहा जब चक्षुजल में
फिर सहे अवमानना-
14 JUN 2020 AT 12:19
everything goes down when ego comes up .
अहंकार आने पर सब कुछ चला जाता है ।-