रात की अंगड़ाइयो में
लिखती रही तुम्हारा नाम
सिरहाने रखी तकिये पर हर दफा
जिसे तुम मोड़ दिया करते हो
वैसे ही जैसे मुरझाया ग़ुलाब
भूल जाता है अपनी खुशबू बिखेरना
इसीलिए हर सुबह सजाती हूं तुम्हे
मांग के सिंदूर में, चूड़ियों की खनक में
कि बाते ये ही बस सिर्फ तुम्हरी कहती हैं
आँखों का काम तो बस एक ही है शायद
इंतज़ार करना ..... तुम्हारा
वहा जहा शाम ढलते ही तुम खो जाते हो-
हमारा प्रेम कोई कहानी नही
जो चंद पन्नों में बंध कर
विस्मृत यादों में धुमिल हो जाएगा
अपितु एक मृदुल कविता है
जो स्वयं की मधुरिमा से
हर क्षण सौन्दर्यीत हो जाएगा
बस संभाले रखना वचन
तुम अपने , मैं अपने, जो
बंधे नही ज्ञात "रिश्ते" से-
प्रतीक्षा समाप्त कर देती है
भावनाओं को जो चौखट पर
आस लगाए बैठी रहती है
किसी के पाँव की आहट सुनने के लिए।
अंतिम समय तक आँखें टक टकी लगाए
प्रतीक्षा करती हैं उसके लौट आने के लिए
परन्तु भूल जाती है आशाएं की
प्रतीक्षा समाप्त कर देती है
प्रेम की आखिरी सांस को
और खालीपन को उजागर
कर के व्यथित कर देती है
जीने के लिए प्रतीक्षा के साथ
बीती स्मृतियों के भीतर !-
हमें जुलाई का मौसम बेहद पसंद है
तेरा अक्स बारिश में आंसू बन के बह जाएगा
नवंबर में तू रहेगा बाहों में किसी और के
दिसम्बर मेरा इस बरस तन्हा कट जाएगा
बची खुची सी है ये बीस बरस की ज़िन्दगी
तुम्हें एहसास होने तक ये सफर मेरा
किसी और के आँगन में बीत जाएगा-
कमरे में पड़ी उस किताब को आज गौर से देखा
जिस पर धूल की चादर ने ढांक लिया था
अनुशीर्षक को ,शायद बरसों पहले पढ़ी गयी थी
अनुमानित है यह उस सदी की रही होगी जब
हम घर के बागीचों को सींचने का समय निकाला करते थे
जब बाबा-दादी के संग बैठ कर, उनके अंग्रेज़ों से
लड़ने के किस्से सुन कर हतप्रभ हो जाया करते थे ।
अम्मा-बाबू जी एक साथ शाम की चाय पर दिन भर
की बाते और फाइलों की उलझने साझा करते थे ।
अब तो बस व्याप्त है इस दौर में एक दूसरे से
हज़ारों मील के रिश्तों को जोड़ने वाला
यंत्र शायद तंत्र "मोबाइल" अनेकों अनोखे रूप में
जो तोड़ रहा है, घर के भीतर के तारों को
इसीलिए आज सिर्फ किताब पढ़ेंगे,
वही जिसने धूल से स्वयं को ढांक लिया है
उसके पन्नों की महक याद दिलाएगी मुझे
बीते हुए दिनों की फिर से ।-
शब्द भी चिताओं की तरह
जल कर धुंआ हो गए हैं ,
जो बच गए वो पानी में
कहीं तैरते मिल जाएंगे
पर फायदा भी क्या है
इन मौन शब्दों का अब,
अनसुना कर देने की फितरत है
ज़्यादा बोलने वालों की
कुछ कहानियां बन के टूट गईं
जो बची हैं सुनाने को वो,
ज़ेहन में ही दफ़न हो गायीं
बची खुची सी सांसे अब
खौफ में ज़िन्दा रहती हैं
की सहारे जो उनके हैं ,
छोड़ न दे हाथ कहीं
कबतक ये सिलसिला चलता रहेगा
मंज़र काले बादलों का घिरता रहेगा
खोल दो खिड़कियों को, मिट जाने दो धुंआ ,
शब्दों को आज़ाद कर दो, आवाज़ दो फिर से यहाँ-
चलो एक बार फिर से अकेले ही रहना है
दिल में अब जगह ज़्यादा होगी ,
आँखों में यादें फिर से कम होंगी,
धुंधलाती आशाओं में धीमी हो जाएगी
इंतज़ार की लौ, जो जलती थी ,
सूरज के ढल जाने पर, हर शाम ।
दर्द पिघल जाएगा मौसम के बदलते ही,
गाल पर चढ़ा गुलाल फीका पड़ जाएगा ।
पर खुशी रहेगी मन में कि मिले तो सही,
एक बार फिर से दूर हो जाने को ....-
तमाम रातें यूं ही गुज़ार दीं
इंतज़ार की चौखट पर बैठे,
न इश्क़ आया न तुम आए
बस ज़ाया होते रहे आँसू-
मैं सम्पूर्ण नही।
अनेकों दोषों से
घिरी हुई अंधेरे में
उजाले को पाने की
चेष्टा नित दिन करती हूं...
प्रेम अविरल है मेरा
तुम्हारे लिए, इसीलिए
सम्पूर्ण नही होना चाहती..
वो जो हर बार तुम मेरा आईना
बनते हो, निखरती हूं मैं
भीतर से आकर्षण की
केंद्र बिन्दु बन के
जिससे सम्पूर्ण हो जाता है
प्रेम !-
अब चुप रहना
की आवाज़ से सब
बिखर जाएगा ,
अंदर की घुटन को
खामोश हो जाने दो
बह कर कहीं दरिया में
डूब जाएंगे हर्फ़ सारे
सिसकती आँखों से
एक बूंद भी मत
गिरने देना फ़र्श पर
बस चुप रहना
घिरते अंधेरे में
तोड़ देना खामोशी
से दम, चुप रहना !-