उर्मिला सा जीवन मैं जीती रही
तुम लखन सा विरह पीते रहे
कौन जाने खत्म होगी कब ये अवधि
दर्द का वनवास कब तक जियेंगे-
॥ 1॥
खाना खा मेरी चाहत
खा ना खा तेरी मर्जी ॥
॥ 2॥
राम विराजे अवधि से तिरपाल मे
बेखबर ये राज नेता हैं
मर्म तुलसी के अवधी प्रेम से ॥2॥
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कुछ प्रतिक्षाएँ सदैव
'प्रश्न' बनकर रहेंगी,
और इन प्रश्नों के
कोई उत्तर नहीं होते,
बस तय अवधि होती है।
लम्बी, छोटी, अंनत
अंततः
अचेतन विस्मृत हेतु।।-
एक "अवधि" तक "अवधी" से प्रेम की डींगें हाँकने के बाद वह अंग्रेजी को पसंद करने लगा था ,समय सचमुच कुछ बदल सा रहा था ।
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ईड़ा पिंगला एवं सुषुम्ना के पश्चात
सप्तचक्रों की परिधि में
आड़ी तिरछी नहीं
एक रेखा सीधी में
मैं अधिकार करना चाहती हूँ
तुम पर विश्वास है विधि में
जगाकर आध्यात्म तुम्हारे
अंग अंग निधि में
कुंडलिनी जागृत कर
विभूतिपाद एवं अष्टसिद्धि गतिविधि में
दैवीय शक्ति से ओत-प्रोत
दैदीप्यमान सन्निधि में
अधिक समीक्षाओं में नहीं
इसी क्षण इसी अवधि में
भीगुं मैं तुम्हारे संग
उन्मुक्त प्रेम की वारिधि में-
उर्मी के तप तेज से,
पाए लक्ष्मण प्राण।।
रामागमन का दिवस,
बने पीर का त्राण।।-
【 बोनसाई 】
बोनसाई के पौधों की जड़ों में
फैलने लगी है सड़न
पीली पड़ने लगी हैं पत्तियाँ
जिसे देखने भर से
भीतर और भीतर
मन के सदाबहार वनों में
फैलता चला जाता है उजाड़
फिर भी मैं सींचने की शक़्ल में
संभाल रही हूँ तुम्हें
धैर्यपूर्वक स्नेह से
विश्वास करो !
जीवित रखना चाहती हूँ तुम्हें
अंतश के अनंत में
किसी अनिश्चित अवधी के लिए ।-
उनके दीदार की तारीख़ अब लम्बी हो गई है..!!
लॉकडाउन की अवधि अब 3 मई हो गई है..!!-
मुझे समझना इतना "आसान" नही हैं ..
मैं संस्कृत का "अर्थात" हूँ,गणित का "सूत्र" नही..!!
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राम चरण सरोज मन लागा। अति आनंद तब निज उर पावा।।
जेहि पद कमल अहिल्या तारि। पाथर से पुनि बन गई नारी।।
जिन चरनन केवटहि पखारे। राम को गंगा पार उतारे।।
जिनके चरण भरत मन लागा। अवध राज जेहि कारण त्यागा।।
सो पद कमल सुंदर सुखदाई। चरण पड़े शुभ मंगल पाई।।
जेहि जेहि राम चरण धर लीन्हि। सो मन राम अभय कर दीन्हि।।
सुमिर राम निज मन पद धरहु। सफल सुमंगल जीवन करहुं।-