अलग हमारी मौज।
पड्यो नही हरी आसरे,
दुनिया धकियावे रोज।।-
ओमप्रकाश लटियाल
(ओमप्रकाश लटियाल)
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Joined 7 August 2021
20 HOURS AGO
बहुत तपाया बदन को,
पैसा आया जब पास।
पढ़ने बाहरभेजा पुत्रीको,
अफसर बनने की आस।।-
20 HOURS AGO
अंधियारे से क्या डरें,
नित होती है शाम।
रात बनाने की वजह,
सभी करें आराम।।-
20 HOURS AGO
भीगी बारिश में इसकदर, हो गया उसे बुखार।
उठा कर उसे लाना पड़ा, करवाने को उपचार।।
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31 JUL AT 22:37
चुप रहती रस चूसती,
करती अपना काम।
ध्यान नही इनपे धरे,
नही नाम नही बदनाम।।-