चलो मान लिया,यूँ तो मेरी तहरीर के वो नुक्तें है......,
मसला इन अल्फाजों का नहीं,वो मेरी हाँ पर अडे़ है!!-
जब तक अल्फाज मेरे महसूस ना होंगे ,
मोहब्बत के परिंदे रूह कैसे छूं पाएंगे ।-
जब जब उसे यादों मे पिरोया है,
मैंने अपने ही कंधे पर सिर रख के रोया है।
-
कुछ बाते यू दिल में रह गई
जो अल्फाज बया ना कर पाए
वो बेहति आंखे कह गई
-
अल्फाज लिए फिरता हूं अहसासों की मंडी में ,
कागज काले करता हूं इंसानों की बस्ती में।-
इंकार है, इजहार है, इकरार है, क्या-क्या है,
सजा कर लए है गुलदस्ता अपनी मोहब्बत का,
ज़रा बता भी दो अल्फाज क्या-क्या है।।-
सोचो अगर हम साथ होते तो कैसा होता ...
अलसाई सी सर्दियों की सुबह होती ,मेरे हाथों में चाय के दो प्याले होते और मेरी जुल्फों से टपकती पानी की बूंदे तुम्हारे चेहरे को भिगोती तुम कनखियों से मुझे ताकते ..
सोचो अगर ... तुम्हें बाहर जाने की जल्दी होती और तुम्हारे कुर्ते का बटन टूट जाता मैं भुनगभुनाती सी उचक उचक कर तुम्हारे कुर्ते के बटन टाँकती और तुम झुक कर मेरे माथे पर एक बोसा रख देते तब मैं घूर के तुम्हें देखती ...
सोचो अगर ..
हम घूमने जा रहे होते और तुम्हे किसी काम से अचानक जाना पड़ता है मैं गुस्से में तुम्हारी गाड़ी की चाबी छिपा देती तुम मुझे मनाते मैं आंखें दिखाती और फिर डबडबाई आंखों से चाबी तुम्हें थमा देती ...
सोचो अगर ....
एक दिन अचानक मैं तुम्हें छोड़कर तुमसे बहुत दूर चली जाती फिर एक दिन नन्हीं गौरैया बन कर तुमसे मिलने तुम्हारी खिड़की पर आती और जोर जोर से तुम्हें पुकारती तुम्हें मेरे वहां होने का एहसास तो होता मगर मै नही दिखती तुम बेचैन होकर खिड़की तक आते और मुझे देख कर भी मुझे ना पहचान कर वापस मुड़ जाते..
सोचो अगर...
मगर नही .... रहने दो...
तुम कहाँ सोच पाओगे ये अल्फाज ए ख्यालात.. जिनमे,
मैं एक जिंदगी जी लेती हूँ साथ तुम्हारे ...
तुम तो मगरूर हो अपनी ही परिभाषाओं में..-
कभी वही इत्र सी खुश्बू..
तो कभी लबों पर हँसी ले आएंगे
मेरे अल्फ़ाज़ कभी कुछ कारगर कर जाएंगे!
कभी वही आँखों में चमक
तो कभी रुखसार पर लाली ले आएंगे
मेरे अल्फ़ाज़ कभी कुछ कारगर कर जाएंगे !
कभी उन्ही यादों का कारवां..
तो कभी धड़कनों में एहसासों का भँवर ले आएंगे
मेरे अल्फ़ाज़ कभी कुछ कारगर कर जाएंगे !
कभी वही खलती मौजूदगी..
तो कभी रिश्तों का फिर से हिसाब ले आएंगे
मेरे अल्फ़ाज़ कभी सच बयां कर जाएंगे !
कभी वही मतलबी झूठ..
तो कभी वजूद को फिर दफ़ना आएंगे
मेरे अल्फ़ाज़ कभी सच बयां कर जाएंगे !
कभी उन्ही चुभते पलों की ख़लिश..
तो कभी साँसो को थमने का तोहफ़ा दे आएंगे
मेरे अल्फ़ाज़ कभी सच बयां कर जाएंगे !!
-
जीवन भर साथ निभाने का वक्त आया
तो तुमने कहा था
ये हो नहीं सकता, मैने अभी तुम्हे जाना नहीं
जब दुनिया की ठोकर खाकर मेरे पास आओगे
तब हम भी कहेंगे,
माफ करना, मैने तुम्हे पहचाना नहीं-
मेरी लिखावट की हर बनावट तुझी से है।
मेरी नज़्म की हर सजावट तुझी से है।
मेरी शायरी का हर ख्याल तुझी से है।
मेरी शायरी का हर अल्फ़ाज़ तुझी से है।
-