हर बात पर बेएतबारी जताने लगे,
हम थे हमदर्द और बेदर्द बताने लगे,
अब उसको कितना अपना समझूं मैं
गर हमसे अपनी तस्वीर छिपाने लगे।-
Akash RAhi
(✍️राही आकाश...)
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From ~ बुंदेलखंड(टीकमगढ़)
Lives~ दिल्ली
मुझे सूखे से डर नहीं लगता शाहब,
आकाश हूँ खुद बरसा ... read more
Lives~ दिल्ली
मुझे सूखे से डर नहीं लगता शाहब,
आकाश हूँ खुद बरसा ... read more
Joined 22 March 2020
18 JUN AT 21:21
2 MAY AT 9:45
मैंने देखे है तुम्हारी आंखों के नीचे गहरे काले गड्डे
मैंने सुनी है तुम्हारे दर्द की कराहना
मैंने महसूस किया है तुम्हारे अंतर्मन के द्वंद्व को
मुझे यक़ीन है तुम्हारे संघर्षों के सामने
तुम्हारी सफलता की कहानी बहुत छोटी होगी।
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23 APR AT 19:34
मुझे अच्छे नहीं लगते तुम्हारे हाथों में कंगन,
मैं तुम्हारे लिए किताबें लाऊंगा।
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17 AUG 2022 AT 0:59
जातिवाद बैठा मार कुंडली,
मैं जाऊं तो कहां जाऊं।
हर घर में है अब मनु बैठा,
मैं इतने अम्बेडकर कहां से लाऊँ।-
3 AUG 2022 AT 22:28
सजाया था जिसे अपने हाथों से
आज उसी दीवार को बिखेरा है,
बस अंतिम शाम थी तेरे नाम,
अब कल कहीं और सबेरा है।
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