"इश्क" दिल सें किया जाता हैं
गरीब या अमीरो सें नही.-
अमीरों को मखमली सेज पर भी नींद नहीं आती है
गरीबी बेझिझक थक कर कही भी सो जाती है।-
कमबख़्त इस गोल रोटी का वजूद ही ख़त्म करदो
सड़क किनारे बेफ़िक्र सो कर मैं भी अमीर हो जाऊं।-
आज कल की पीढ़ी लिखती है "आजादी पर",
बात करती है "आजादी कि",
पर चाहती है "अमीरी"...!!!!!
(:--स्तुति)-
ये अमीरी-ग़रीबी की कहानी
मुझे भी समझ आ गई
वो जो पहलू में बैठी रही 'अमीरी' आ गई
वो जो उठी, जो चली, तो 'ग़रीबी' छा गई
- साकेत गर्ग-
सुना है गुजरात का कर रहे शृंगार
न कोई महल, न ही कोई मीनार
अमीरी की नज़र न पड़े गरीबी पर
खड़ी कर दी बीच में एक नयी दीवार-
ये जो तुम हर बात पे हैसियत की बात करते हो
ये पैसो की अमीरी है तुम्हारे पास या
खुद्दारी और सम्मान की हां मै हूं तुमसे गरीब
पर मैंने ए कमाई खून पसीने बहाकर
बटोरी है जुए और सट्टे में जीत कर नहीं
ना किसी गरीब का हक छीन कर ।
✍️-
फ़कीरी से भी ताल्लुक रहा है मेरा, अमीरी भी मैंने देखी है,
ईमान था तब भी मुझमें, इंसानियत अब भी ना मैंने फेकी है!-
दिल, दिमाग और रिश्ता-नाता जहां बिकता हैं
उस बाज़ार में इनसे ज्यादा महत्व पैसा रखता है
दो वक्त की रोटी को चुरा आया वो मंदिर से पैसा है
इंसानो ने शायद पूछा नहीं तु कितने दिनों से भूखा है
दफ्तर में बैठे-बैठे बिक गया उस अफ़सर का इमां है
गया नहीं अभी तक महंगी गाड़ी में बैठने का उसका गुमां है
बिक रहीं बेटियां दहेज़ और बिक रहा बेटा नौकरी के नाम पर है
क्योंकि हर घर बिक रहा रिश्ता अब पैसों के दाम पर है
कड़ी धूप में पसीना बहा कर वो रोज अगली तारीख पूछाता है
घर चलाने को वो महीने की पगार का बेसब्री से इंतजार करता है
धीरे-धीरे जिंदगी खो बैठा वो भागते-भागते पैसों को कमाते-कमाते हैं
क्योंकि कड़वा सच तो यह है कि पैसा बनता भी है अब पैसों के दाम पर है।
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