अपनों पर शक का कोई इलाज नहीं,
और गैरों पर अपने हक़ का कोई हिसाब नहीं।-
2020
ना जानें कैसा ज़माना आ गया है।
अपनों को भी बेगाने बता गया है।-
जीवन मे कुछ ऐसे लोग मिल जाते है
जो अंजाने होकर भी अपनों से बढ़कर
स्नेह और सम्मान देते है
जो हमे अपनों से ज्यादा जान लेते है
और हमारे हर दुख दर्द मे साथ देते है
और कुछ अपने होकर भी धोखा दे जाते है....
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"साजिशें कुछ यूं चली,
मेरे उजाले ही रूठ गए मुझसे!"
अब मेरा अंधेरा भी नहीं ढूंढ पाता मुझे,
लगता है!
मेरे जुगनुओं ने,
मेरे वक्त से बगावत मांग ली है।।।।।।
"और इक दौर बीत गया है,
सभी को खुश करते हुए!"
पर ना जाने क्यूं?सभी खफ़ा हैं मुझपर????
लगता है!
मेरे हमराजों ने
मेरे वक्त से अदावत मांग ली है।।।।।।
"और मेरा दम घुटता है,
हर पल अपनों के बनावटीपन से!"
अब मेरी हर महफ़िल भरी, पर सूनी है,
लगता है!
मेरे जफ़ाओं ने
मेरे वक्त से कोई शिकायत मांग ली है।।।।।-
ख़ामोशियों का मेरे, मैं तुझको इल्ज़ाम न दूं,
तू कोई गैर नहीं, शामिल मेरे अपनों में ही है !-
अपनो के बीच, मैं देर तक सोता हूँ आजकल,
लेकिन डरता हूँ, कहीं कोई दिन में, जला न जाये ।-
मौन रह कर जो
जिम्मेदारीयाँ निभातें हैं
अपने प्रेम-स्नेह को
पर व्यक्त ना कर पाते हैं,
जग मे नहीं हैं
आपका कोई मोल
मेरे "भाई " आप हो
सबसे अनमोल।-