At the end of a long journey
The People's will remember your destination...
But your reminiscence is your journey.-
Currently worked at Hon'ble HIGHCOURT allahabad as REVIEW OFFICER... read more
कुछ उम्मीदों का दामन थामे, सपनों की राह मैं जाता हूं
इक मोड़ है, जिस पर जाकर मैं,लौट शुरू पर आता हूं,
बस खुद को ही दोहराता हूं।
हारा हूं मैं? या की मैं!,गर्दिश में था जो टूट गया
वो बचा हुआ इक तारा हूं,जुगनू सा मैं शाम ढूंढता
बस खुद को ही दोहराता हूं।
कल था जो, हो कल ना वो,ये सोच के मैं घबराता हूं,
है अंत मेरा यदि ऐसा तो,क्यों इसे नहीं मैं भाता हूं
बस खुद को ही दोहराता हूं।
हर हार की होती सीख नई,मन अंदर की वो चीख नई
वो मोड़ ना पार मैं पाता हूं,थककर फिर थकने को मैं
बस खुद को ही दोहराता हूं।-
एक नए जीवन के शुरू होने से ठीक पहले
एक जीवन अंतिम अनंत साँसे गिन रहा था
एक जो झूठ और लालच का बुनियादी था
एक जिस पर ईमानदारी की छत गिर गई
एक जो सब बेचकर ख़रीद की नुमाइश था
एक जो अतीत के पाँव तले कुचल गया था
एक में प्रेम था जो शायद अभी नवजात था
एक में कुछ तो था जो मन अंदर कँपा रहा था
अब नए प्रेम को निभाना एक ज़िम्मेदारी सा है
यानी तय है की आहत होना भागीदारी सा है ।।-
इक रोज़ पूछ लिया खुदसे कि क्या हूँ?
क्या नहीं हूँ मैं।
फिर बात बदल दिया ऐसे जैसे
की नहीं हूँ मैं।
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कितनी मुहब्बत है तुमसे, तुम्हें बता भी नहीं सकता
समंदर हूं, आसूं बन पलकों पर आ भी नहीं सकता
और कुछ आने को बेताब, हरपल होंठो पर कांपता
अधूरा हूं तुम बिन ये तुमको जता भी नहीं सकता।।-
कुछ उम्मीदों का दामन थामे, सपनों की राह मैं जाता हूं
इक मोड़ है, जिस पर जाकर मैं,लौट शुरू पर आता हूं,
बस खुद को ही दोहराता हूं।
हारा हूं मैं? या की मैं!,गर्दिश में था जो टूट गया
वो बचा हुआ इक तारा हूं,जुगनू सा मैं शाम ढूंढता
बस खुद को ही दोहराता हूं।
कल था जो, हो कल ना वो,ये सोच के मैं घबराता हूं,
है अंत मेरा यदि ऐसा तो,क्यों इसे नहीं मैं भाता हूं
बस खुद को ही दोहराता हूं।
हर हार की होती सीख नई,मन अंदर की वो चीख नई
वो मोड़ ना पार मैं पाता हूं,थककर फिर थकने को मैं
बस खुद को ही दोहराता हूं।-
किश्तों में दर्द मिलता,इस रिश्ते में अब नफा नुकसान होता है।
जहन जहर से भर जाता ,इश्क़ निभाना जैसे छूना आसमान होता है।-
हर अपने को छोड़ के वो
ना जाने कैसे सबको अपनाती है
और जो है वंश बढ़ाती आगे
कभी उस वंश की हो ना पाती है।
और कहने को थे दो घर उसके
पर घर कोई उसका हुआ नहीं
और एक पराया बचपन से था
एक जो उसका हुआ नहीं।
और जख्म जो मिलते छुपा वो लेती
पर घायल बातों से हो जाती है
और औरत खुद में एक कहानी
वह किरदार की बस रह जाती है ।
और एक शरीर किरदार अनेकों
फिर लाचार वो क्यूं हो जाती है
और जब मर्यादा मर्यादित ना हो
तब वो चंडी दुर्गा हो जाती है।-
दर्पण के उस ओर, मैं हूं और इक घर है मेरा,
जो इस ओर है,प्रतिबिंब है,और बसर है मेरा।।।
नींद, ख्वाब सुहाने, सब कैद हैं! उस ओर ,
इस ओर तो जगता , नींद में बिस्तर है मेरा ।।।
कश्तियां, लहरें, मेरे किनारे हैं! उस ओर
यूं तो यहां गुम इक नांव में समंदर है मेरा।।।
भटक रहा हूं मैं मुझमें, जाऊं मैं किस ओर
हर जगह ढूंढता फिर रहा मुझे घर है मेरा।।।-
मैं भीड़ हूं, मेरी थकी सी सांसें ,झुके से कंधे, हैं पथराई आंखें
मैं सब्र भी करता और तरसता,रिश्तों! की डोर से बंधा हुआ
इक काठ का इंसान हूं ,मैं आदमी इक आम हूं।।
है जिम्मेदारियों का इक महल, कहीं है सघन, कहीं है विरल
मैं हर वक्त लड़ता और मरता, किसी!गलियारे में पड़ा हुआ
इक गुम हुआ सामान हूं, मैं आदमी इक आम हूं ।।
बस के धक्के साहिब की डांट, परिवार पालता ना कोई घाट
मैं खुद ही चुनता और कोसता, चुनाव! बाजार में ठगा हुआ
इक मूक बना आवाम हूं, मैं आदमी इक आम हूं ।।
ताउम्र चुकाता कर्ज की किश्ते, ऊपर रखता हर रिश्तों के रिश्ते
मैं सब कुछ सहता और चुप रहता, अपनों! से धोखा खाया हुआ
इक सुतिया* इंसान हूं, मैं आदमी इक आम हूं ।।-