कुछ इस तरह
नज़रियों में फर्क देखा है मैंने।
लिखने की क्या बात करते हो,
शायरों का बाजार देखा है मैंने।
क़लम के जरिए निकालकर रख दे,गर कोई दिल अपना,
नज़र से गुजरकर लोगों को नजरअंदाज करते देखा है मैंने।
ये तो बात हुई एक पहलू की,
जिसका दूसरा पहलू भी देखा है मैंने।
पोस्ट के नाम पर चाहे वो कर रहें हो कितनी भी टट्टी,
आँखों पर पट्टी डाले,बेवकूफों को सूँघते देखा है मैंने।
कुछ इस तरह,
नज़रियों में फर्क देखा है मैंने।
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