हम बात चाँद की करते रह गए,
हमसे सितारे नाराज़ हो गए…
हम गए अँधेरे को बताने ,
कम्भख्त रात परेशान हो गए…-
;..रौशनी ने, यह किस क़ीमत पऱ मिटाये अंधेरे,
दीपक जल गया पऱ हाथ भी जल गये मेरे..;-
ये हमदर्द अंधेरे ही तो अपनों से
एक रुहानी मुलाकात कराते हैं,
वरना रोशनी की चकाचौंध में तो,
शैतान भी फरिश्ते नज़र आते हैं |
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अपनी ज़िन्दगी के काले अँधेरे तुम्हें बताने लगी है
वो तुम में अपनी ज़िन्दगी का उजाला पाने लगी है
इश्क़ होने लगा है उसे तुमसे कुछ ऐसा ख़ुशनुमा
वो तुम्हारे इश्क़ में अपने सारे ग़म भुलाने लगी है
- साकेत गर्ग 'सागा'-
है अँधेरे में गुम मेरे रास्ते
एक दिया तुम जलाना मेरे वास्ते-
अब कोई मायने नहीं हैं तेरे मुझमें
जबसे हुईं हूँ आजाद मैं दिल से तेरे
अब ये रोशनी ही रास आती है इस दिलको
जब से अँधेरों से नाता तूटा है..
जब से साथ तेरा छूटा है...-
दे तसल्ली कोई तो आँख छलक उठती है,
कोई समझाए तो दिल और भी भर आता है।
कोई जाता है यहाँ से न कोई आता है,
ये दीया अपने ही अँधेरे में घुट जाता है।-
गुमनाम रिश्ते तो अंधेरों में पला करते हैं,
जुगनुओं की शक्लें कब किसी ने देखी हैं-