हर रिश्ता विश्वास से बनता है
दिल मे प्यार से बनता है
हक़ न जताना कभी किसी पर
क्योंकि अक्सर हक़ जताने से ही
घुटन का एहसास होता है-
विशवास,, मतलब,,
जब हम अपने अंदर के विष (जहर) को हटाकर किसी के हृदय में वास करने लग जाते हैं,, तब जाकर यह विशवास पैदा होता है,, भगवान को भी पाना हो तो सबसे पहले उसके होने पर विशवास करना पड़ता है ,, के वो है,, लेकिन विशवास जीतना इतना आसान नहीं होता,, अपने ही मन को कई बार समझाना पड़ता हैं,, कई बार दूसरों को समझने के लिऐ खुदको गिराना पड़ता है,, फिर जाकर यह विशवास हासिल होता है,, जो इनसे पार नहीं हो पाता,, वो विशवास कभी हासिल नहीं कर पाता,, पार्वती मां ने भी सबसे पहले शिव का विशवास ही जीता था,, तब जाकर शिव ने उन्हें अपने बराबर का सम्मान दीया था,, आज के जीवन में यह बात ऐसे लागू होती है, आप मां पार्वती जैसा विशवास बनाइए,, सामने वाला अपने आप शिव की तरह आप पर आंखे बंद करके विशवास करने लग जाएगा ,,।।-
परमात्मा पर पूरा विश्वास है,
पर जीवन मे जो भी घटित होता है
उस पर पूरा अविश्वास है।।
ऐसा क्यों ?
सोचना होगा!
शायद जिसे पुरा विश्वास
हम बोलते है
वहीं पर पूरा अविश्वास है..
सोचिये...-
पैर को लगने वाली चोट...
संभल कर चलना सिखाती है...
और मन को लगने वाली चोट...
Samjhdari
se
jeena
sikhati
h...-
ना जाने वह क्यों उससे इतना प्यार करती है...
वह कभी नहीं कहती कि,
अलग से ले आएगी चांद तारों को, उसकी खातिर
मगर उसकी छोटी से छोटी ख्वाहिश पर
अपनी जान निसार करती है...
ना जाने वह क्यों उससे इतना प्यार करती है...!!!
खुद की परवाह करनी नहीं आती उसे
लेकिन हर पल उसकी फिक्र करती है...
और वह अक्सर डांट देती है उसकी नादानियों पर
उसका बिल्कुल बच्चों का ख्याल रखती है...
ना जाने क्यों वह उससे इतना प्यार करती है...!!!
वैसे तो सुनने को मिलते हैं शहर में उसके बहादुरी के किस्से
पर कोई कर ले साजिश उसे चुराने की इससे...
वह सोते जागते बस इसी बात से डरती है...
ना जाने वह क्यों उससे इतना प्यार करती है...!!!
चांद चांदनी को चाहता है किस कदर,
वह उसे चाहती है इस कदर...
और तमन्ना नहीं किसी और की उसे...
सारी उम्र के लिए उसकी होना चाहती है...
क्योंकि वह पास नहीं उसके तो,
अक्सर देख लिया करती है तस्वीरों को उसकी...
और वह पागल तो सपनों में भी बस उसी का दीदार किया करती है...
जाने वह क्यों उससे इतना प्यार करती है...!!!-
शादी......
शिव-
शादी वो रश्म है जिसमे सात है फेरे जिसका आधा हिस्सा मै और आधा हिस्सा तू है गौरा।
सती-
शादी वो रिवाज है जो दो घरो को नही, दो परम्पराओ को नही, दो अलग सोच को जिन्दगी भर एक साथ चलना सिखाता हैं मेरे नागेश्वर।।
शिव-
शादी मे हर वो रिश्ता मै और तुम=हम का रिश्ता है
जिसमे चाहे वो रिश्ता मिया-बीवी का हो या दो परिवारो का हो मेरी प्रियतमा कभी-कभी दोनो तरफ के पलरो मे से एक को झुकना पड़ता है तो दूजे को संभालना पड़ता है।।
सती-
हे प्रिय , शादी वो डोर है जो जिंदगी भर विश्वास करने का कोइ प्रमाण तो नही देता पर उसे जोड़े रखने का प्रमाण जरूर देता है-मंगल सूत्र।।
शिव-
हे उमा,शादी वो रंग है जो सब पर चढ़ जाता हैं खास उन दो लोगो की जिंदगी मे जैसे कुम-कुम।।
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ममता, इश्क, मजहब मे कोई भेद नहीं होता
ये सुना है कई दिग्गजो से बहुत बार,
लेकिन बेटी से किताब छीनते,
बाज़ार में इश्क बिकते,
मजहब के नाम पर लड़ते झगड़ते,
ये सब देखा हैै हर एक ने,
फिर भी हम इन सब से मूँह ना फेरते,
बस इसे कहते हैं विश्वास ।।
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जब- जब अविश्वास विश्वास की आंखें मूंदे,
तब - तब गलतफहमियां अपना घर ढूढें।।।-