"लिखना शौक नहीं किसी का सुकून भी हो सकता है।"
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अब तो रविवार में भी कुछ मिलावट सी हो गयी है..
की छुट्टी दिखाई तो पड़ती है....
मगर सुकून के पल नजर नहीं आते ll-
चाय का कप होगा, संगम की शाम होगी..
हम आएंगे आपके शहर में, वो शाम यादगार होगी..❤️-
दर्द को झेलने के तरीके दिए जाए
मैं जिंदा हूँ मुझे जिंदा रहने दिया जाए.....।
मैं क्या हूँ क्यूँ हूँ ये लड़ाई तो रोज लड़ती हूँ
ऐ ज़िंदगी !अब मुझे थोड़ा सुकून दिया जाए ...।-
हमने कभी गम से नहीं पूछा, कि तुम्हें कितनी खुशी हुई...
बल्कि हर सुकून से पूछा है... की तुम्हें कितना ग़म है!!!! ❤️-
कमी तब भी सुकुन की होती है
उल्फ़त की पट्टी आंखों से उतार कर देखी है
ख़्वाहिश तो पूरी हवस की होती है
हमने भी एक रात गुज़ार कर देखी है
उन जिस्म-ओ-साद सुकुन की आग़ोश में
कवि चैन कहां से पायेगा
सुकुन तो प्रसाद हिज़्र में भी होता है
वस्ल की ख्वाहिशें हार कर जो देखी है।-
बंद आंखों की तेरी ये हंसी
मुझे तेरी ओर ले आती है
और गले लगकर सुकून दे जाती है-
अब तो बस थक के सो जाती हूँ ,
"माँ"
सुकून की नींद तो बस आपकी गोद में आती थी!!-
तुम्हे थाम के रखने में
सुकूनँ बहुत है,
तुमसे दूर रहकर मैंने
ये महसूस किया है
💔😔-