Bhar de jholi meri ya Mohammad
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समंदर के किनारे शाम गुजर गई
रात हमने किसी अनजान शहर की बेंच पर गुजार दी
बात अकेलेपन की नहीं थी हम तो सिर्फ सुकून ढूंढ रहे थे
गिरती हुई बारिश मेे भी निकले थे
और फिर उन ठंडी हवा की लहरों साथ हम लौट आए
फिर भी कहीं सुकून नजर ही नहीं आया
थक हार कर बस तेरे आगे सर झुकाया
असली सुकून का एहसास तो Ya ALLAH बस तेरे सजदे में जा कर ही आया !!!
#Alhmdulillah #
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अपने इश्क़ का सज़दा कुछ यूं किया हमने,
नज़र मिलते ही नज़र को झुका दिया हमने-
इश्क़ किया 'ताबीर', तो फांकें करके भी, गुज़ारा कर लिया,
हर गुनाह से, इस गुनाह के बाद हमने, कफ़्फ़ारा कर लिया।
बेहोश थे, फक़त महरूम थे, खूबसूरत शय से, उस ख़ुदा की,
बाद इश्क़ के, तमाम क़ायनात से हमने, किनारा कर लिया।-
आती नहीं सदा अब उन दीवारों से भी कोई,
मानिंद-ए-दैर हम जिन को सजदा करते रहे।
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तू सजदा सा,मैं हूं दुआ सी,
बिन सजदे के भला कैसे हो
पूरी कोई दुआ भी,-
रुखसार पे तेरा इज़्हार-ए-मोहब्बत लिख दूं
ख़ुशबू की तरह फैला के हर कोना जी भर दूं
तेरे हुस्न को सजदा करूँ शायरी के अल्फाज़ में
हर लफ़्ज़ में तेरी ख़ुशबू और रंग का जादू छुपा दूं-