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मोहब्बत अधूरी होती है
मगर ज़रूरी होती है
ताकि जान पाओ तुम
कि कुछ है जो शब्दों से परे है
कुछ दायरे हैं जो हदों से बड़े हैं
सीख जाते हो तुम झुकना
और टूटना भी
टूट कर किसी को चाहना भी
टूट कर बिखर जाना भी
जान जाते हो तुम
भीड़ में अकेलेपन का होना भी
तन्हाइयों में खोना भी
परिचित होते हो तुम
भावों के आवेगों से भी
संगीत से रागों से भी
ज़वानी से भी रवानी से भी
हीर रांझा की कहानी से भी
ख़ोज लेते हो तुम
इक होने का रहस्य भी
जुदाई का सामंजस्य भी
पतझड़ में बहार का होना भी
सादगी में श्रृंगार का होना भी
सुनना सीखते हो तुम
मौन से ध्वनित संवाद भी
अनकही हर बात भी
आहटें भी
मुस्कुराहटें भी
ज़िंदगी की धूरी होती है
जैसे इक कस्तूरी होती है
मोहब्बत अधूरी होती है
मगर ज़रूरी होती है-
ज़िंदा लाश के साथ हंसते कातिल को देखा है,
बस इसी खूनी दास्तान का नाम है मोहब्बत।-
मेरे रूह की जमीन पर निशान छोड़ कर चल दिया।
वो देखो मेरे अंदर कुछ वीरान छोड़ कर चल दिया।
तमाम उम्र तड़पने को जिस्म को भी रूह को भी,
अपने दिल जलाती हुई मुस्कान छोड़ कर चल दिया।
किराए के मकान सा रहा वो चन्द रोज़ मेरे साथ में,
मरम्मत जो मांगी तो वो मकान छोड़ कर चल दिया।
इश्क़ के नाम पर लूट गया मेरी उम्र भर की कमाई,
जाते- जाते दुनिया में बदनाम छोड़ कर चल दिया।
इक संघर्ष छोड़ गया इस दिल के, जज़्बात के बीच,
ज़िंदा लाश करके मुझे बेज़ान छोड़ कर चल दिया।-
कभी सोचते हो क्या तुम भी कि ये मेरा हाल है तो क्यूं है
मुझे तो ज़िंदगी से प्यार था, अब ये बदहाल है तो क्यूं है।
चहकती फिरती थी मैं किसी खुशनुमा चिड़िया की तरह,
इक उरूज़ थी मेरी शख्सियत अब ये जवाल है तो क्यूं है।
तुझे पाने की दुआ भी मांगी, तेरे साथ के ख्वाब भी देखे,
फिर क्या हुआ जरा गौर कर कि जीना मुहाल है तो क्यूं है।
तेरा हाथ बढ़ा था मेरी तरफ़, लेकर आरज़ू मोहब्बत की,
अब कहां गया वो शख्स बता,अब तुझे मलाल है तो क्यूं है।
तू साथ ना दे ना सही मगर जबाब पे तो बनता है हक़ मेरा,
मेरे लबों पे आकर जो ठहर गया है वो सवाल है तो क्यूं है।-