कुछ अधूरी सी कहानियाँ
पूरी होने की चाहत करती है
कुछ लड़कपन की नादानियाँ
समझदारी की हिमाकत करती है,
टूटना-बिखरना खुद को समेटना
उल्झी जिंदगी के धागों को उंगलियों पर लपेटना,
धागों की धार से जब ये उंगलियाँ कटती है
आंखों से आंसू, जख्मों से लहू की धार बहती है,
लहू की उन बूंदों से नयी कहानी रची जाती है
जिसको लहू और अश्कों की जुबानी कही जाती है,
एक एसी कहानी जिसमें किरदारों की नहीं, रब की मंजूरी होती है
जो खुद में अधुरी होकर भी मुकम्मल से ज्यादा पूरी होती है|
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