मुख्तलिफ खुद में पर हर जगह लोगों की तरह वहीं रहता हूं
भीड़ में होती तमाम उलझन अकेला रहूं तो सही रहता हूं-
आज के दौर मे अकेलेपन मे जीना सीख गये जनाब,
तो सन्यास वाली जिन्दगी आसान हो जायेगी।-
रात कफ़न में बीती पिया जी
सुबहो तेज संभाला
कभी गोविंद की लकुटी पे मोह गई
भई रसखान का रसाला
आज तृष्णा हूं व्यर्थ तुम जानो
पियु संग होऊं भाव की हाला-
प्रश्नकाल का सवाल अब बेईमानी लगता है
अपने देश का पी एम तो इक सन्यासी लगता है
करोंगे क्या सवाल आप यह भाजपा है देश भक्त
प्रश्न मत पूछना भक्तों से कि गद्दारी लगता है
सवाल पूछना हुजूर से तो इक नाफ़रमानी है
क्या "थॉट- पुलिस" से भी तुमको अब डर नहीं लगता है
सब का साथ और विकास ही "मिनिस्ट्री ऑफ़ लव "है
हेट स्पीच से बतलाओ क्या अब डर नहीं लगता है
"कर्मयोगी मिशन "का तो यहाँ है शुरुआत हो गया
ये है गुरुओ के गुरु क्या यह तुम्हें मज़ाक लगता है
"मिनिस्ट्री ऑफ़ प्लेंटी "भी उनने है बना रक्खी
भूखे नंगों को देख क्या तुम्हें डर नहीं लगता है
उसकी होर्डिंग ऊँची और है आवाजे भी ऊँची
बड़ी आँखें सफ़ेद मूछें क्या अब डर नहीं लगता है-
मैं..
क्या थी!!
वो मुझे
क्या से क्या
बना गया...
जीने की कला में
मृत्यु का उत्सव
सिखा गया...-
Aashiq ne ashiqui bhula di,
Jb usne apne pyaar ki taaqat dikha di,
Sb chod chaad, bn gaya woh sanyaasi,
Us rab k Pavitra sthaan ka vaasi.
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कोई जन्म से अघोरी बन जाता है ,
तो कोई चिता पर लेटे हुए भी त्याग नहीं सके।-