ये ज़िन्दगी जैसे लगती एक पहेली है
हो के विदा अँगना आई जैसे नवेली है
हँसती भी हँसाती भी रोती भी रुलाती भी
जीवन जिसे हो कहते सुख दुख की सहेली है
कमरा है मेरा खाली कोई न यहाँ आये
सुनसान पड़ी कब से कैसी ये हवेली है
पतझड़ सहा है करती लाती है बहारे भी
महके कभी बन चम्पा जूही ओ चमेली है
कुछ काम नहीं आया जोड़ा किया जीवन भर
जाता हूँ मैं मेरी खाली आज हथेली है
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