जितेंद्र नाथ श्रीवास्तव   (जितेंद्र नाथ श्रीवास्तव)
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Joined 28 February 2018


Joined 28 February 2018

गरम चाय की प्याली सा तन तुम्हारा 
किसे चाहता  है  सनम  मन  तुम्हारा 

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भीगी रातें लेकर आती यादें तेरी 
भूलना मुश्किल है कल की बातें तेरी 

मेरी दुनिया में उजाला तेरे दम से 
चमका करती मोती जैसी आँखें तेरी 

नाज़ुकी है नाज़ भी जलवों में तेरे 
संगमरमर सी लगी है बाँहें तेरी 

जान देकर भी निभाती है जो वादा 
दुनिया कहती है ,वफ़ा की राहें तेरी 

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बिना चाहे किसी से भी मोहब्बत हो ही जाती है 
अगर उल्फ़त हुई हो तो शिकायत हो ही जाती है 

करो जो प्रेम सच्चा तो पिघल जाता है पत्थर भी 
सुना है पत्थरों की भी इनायत हो ही जाती है 

तबाही होने लगती है नज़र आती नहीं जब तू 
निगाहें ढूंढती रहती हैं आदत हो ही जाती है 

बनाकर के बहाना आशियाने पर मेरे आना 
बिना मतलब भी मिलने से रफ़ाक़त हो ही जाती है 

नयन के तीर को तन -तन चलाना जानती हो तुम 
नज़र तिरछी अगर डालो क़यामत हो ही जाती है

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ज़मीं ज़िंदगी की पड़ी रहती परती

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हवाओं में उड़ती रंगीन तितलियाँ हैं 
अदाएं सनम की गिराती बिजलियाँ हैं

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किसी रोज़ तुमने कहा था 
तेरे दिल में कुछ कुछ हुआ था 

लगी मोम की गुड़िया जैसी 
बदन तेरा मैंने छुआ था

सबा बन के जो पास आई 
कि गुंचा-सा दिल खिल उठा था 

मेरे पास आई जो चलके 
सुकूं दिल को मेरे मिला था 

लगी जागने आस मेरी 
दिया आँखों में जल उठा था 

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ख़ुदा की यह दिल से इबादत न करती

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ख़ुदा तू ने कैसी खुदाई बनायी

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ख़ुदा की बनायी यह दुनिया है कैसी

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सोचना फ़िर बोलना तुम 
राज़-ए-दिल मत खोलना तुम 

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