जादू...
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धन्यवाद उसको
जिसने प्रेम करना सिखाया
प्रेम में बांवरा बन
फिरना सिखाया
सिखाया जिसने
चाँद से प्रेम करना
प्रेम को प्रार्थना बनता दिखाया
धन्यवाद उसका
जिसने प्रेम करना
और
प्रेम न करना सिखाया...
इस मतलबी दुनिया में
इसका हिस्सा बनाया
धन्यवाद उसका
चाँद पर जिसने ग्रहण लगाया
धन्यवाद उसका
जिसने प्रेम कर
प्रेम न करना सिखाया।
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चलना इन हवाओं से
जो न कोई दिशा देखती है, न मंज़िल तक चलती है
चलती है मदमस्त अपनी ही धुन में
मैंने सीख लिया है
ठहरना इस धूप से....
बुरे दौर में ठहर जाना कुछ क्षण को
फिर दोपहर बाद मुस्कुराना...
मैंने सीख लिया है
प्रेम इस बारिश से....
बिना वजह खुश रहना और झूम कर थिरकना
मैंने सीख लिया है
मौन रहना इस रात से
गुनगुनाना तेरी यादों को तन्हाई में
और सुनना प्रेम का गीत मन की गहराइयों से...-
रात की दीवार पर
देखो मैंने
हर कोने में
यादों की तस्वीरें सजाई है
एक तरफ कुछ खट्टी कही...
कुछ मीठी सी मुस्कान
वहाँ उस ओर कड़वी सी लड़ाइयां
और देखो यहाँ विरह की रात लगाई है।
वहाँ ऊपर काली रात के माथे पर
देखो मैंने...
मुहब्बत के चाँद से रोशनी सजाई है...
दीवार को देती आसरे पर देखो
मैंने सितारों की एक बेल लगाई है
इस ज़मीन से आसमान तक
मैंने हमारी हर बात सजाई है
रात की दीवार पर
देखो मैंने
हर कोने में हमारी तस्वीर सजाई है...-
मैंने हमेशा अपने प्रेम को चाँद कहा
चाँद में हमेशा उसका एहसास दिखता है...
कभी वो चाँद मेरी मुंडेर पर बैठता
कभी मेरे सिरहाने सोता
कभी जब खुद न आ सका तो
चाँदनी संग मुझतक पहुँचता....
पर उतरा हमेशा फलक से ही
आज परिभाषा कुछ बदल सी गई
कल तक जो फलक से उतरकर
धरती तक पहुँचता था...
आज उसने धरा को खुद में समेट लिया
प्रेम वही था, जो हमेशा ही अनोखा रहा
आज उसके शब्द नहीं थे
था तो सिर्फ मौन एहसास
समर्पण, भाव, स्पर्श....
पूर्णतः प्रेम के प्रति....
आज मैं या वो नहीं थे
था केवल शुद्ध प्रेम....
प्रेम की एक और सीढ़ी...
सुनो!!
लो,एक बार फिर तुमसे इश्क़ हुआ ❣️
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पंचमहाभूतों से परे
हर सीमा, हर बंधन से परे प्रेम
न किसी की जाती से बंधा
न किसी धर्म से बंधा
अपना आकाश अपने पंखों पर लिए
चलता ही रहा
और सुनों!
तुम जो कहते हो न
क्रोध क्यों है?
तो, जहाँ तीव्र प्रेम होता है
वहीं तीव्र क्रोध भी है
प्रेम की असीम परिधि के उस पार
क्रोध ही विद्यमान है....
जब क्रोध, अपनी सीमा को लांघता है!
तब वहाँ तुम....
हाँथों में चांद की रोशनी लिए
मुझे पुनः प्रेममय कर जाते हो....
बस, इसी में समाहित तुम और मैं
हर बार प्रेम की परिभाषा को
नए शब्द दे जाते है.....
और मैं हर बार की तरह कह जाती हूँ
लो!एक बार फिर तुमसे इश्क़ हुआ 💌-
जब दो किनारे ऐसे मिले हो
जो जीवन भर
अलग अलग राहों पर
जुड़ते रहे कहीं किसी सागर से
पर फिर रास्ते अलग हो गए
वो किनारे संग मिले जहा पर
वहाँ वो खुद सागर हो गए...
बन गए मुहब्बत के ख़ुद ख़ुदा
इश्क़ के वो नए जमाने हो गए...-
हर एक शख्स में बताओ
तुम दिखते क्यों हो
गर मुहब्बत नहीं हमें तुमसे
तो हर लफ्ज़ में महकते क्यों हो....-
रात तो काली ही थी
दिन भी कभी कला होता
काले होती देह सभी की
रूह पर काली स्याही होती
न होता श्वेत मन किसी का
न सतरंगी वो कहानी होती
न होता कही राजा अनोखा
न अनोखी कोई रानी होती
एक काला चाँद होता
काली उसकी चाँदनी होती
काली होती सारी दुनिया
काली हर कहानी होती
काली हर कहानी होती..-