बेजुबान की चीख
बेजुबान मासूम हूं मैं देखो कितना मजबूर हूं मैं
एक रोटी को तरसता हूं रास्ता तेरा ही तकता हूं..,
ऐ मानव जरा इंसाफ कर मुझसे भी जरा प्यार कर,
रोटी क्यों मुंह पर मारा है मैंने क्या बिगाड़ा है..,
हर वक्त मुझे सताते हो कभी प्यार से बुलाते हो,
मैं दिन भर पीछे तेरे भगता हूं तनिक भी नहीं थकता हूं..!
तेरी वफादारी में जीवन गुजार दिया फिर भी तूने दुतकार दिया,
निर्दयी व्यवहार किया आखिर क्यों मुझको लाचार किया..,
मंदिर में दूध चढ़ाते हो मुझको रोज सताते हो,
हे मानव यह कैसा तेरा इंसाफ है मुझ मासूम में भी तो भगवान है..,
हो तुम्हारी इच्छा तो आधा दो, तनिक ही दो ना ज्यादा दो,
हम तुम्हें ना सताएंगे जो दोगे खुशी से खायेंगे..,
हुई जो त्रुटि हमसे है ऐसा करो हमें माफ करो,
चोट हमें भी लगती है, हम पर ना पत्थर से प्रहार करो..!
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