नरोचित धर्म से कुछ काम तो लो !
बहुत खेले, जरा विश्राम तो लो ।
फँसे रथचक्र को जब तक निकालूँ,
धनुष धारण करूँ, प्रहरण सँभालूँ,
'रुको तब तक, चलाना बाण फिर तुम,
हरण करना, सको तो, प्राण फिर तुम ।
नही अर्जुन! शरण मैं माँगता हूँ ,
समर्थित धर्म से रण माँगता हूँ ।
'कलंकित नाम मत अपना करो तुम,
ह्रदय में ध्यान इसका भी धरो तुम ।
विजय तन की घड़ी भर की दमक है,
इसी संसार तक उसकी चमक है ।
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