|प्रेम पत्र|
चार हज़ार साल बाद उत्खनन में...
फिर मिलेगी एक सभ्यता
और बिखरे पड़े अवशेषों में प्राप्त होगा...
'प्रकृति' के नाम एक प्रेम पत्र-
...क्योंकि 'पाश' ने नहीं लिखा..
"सबसे ख़तरनाक है...
तितली के परों के समान कोमल उन एहसासों का मर जाना..
जिनसे लिखी जा सकती थी सैकड़ों प्रेम कवितायें..."-
संसार के सारे मोह...
जाति के सारे भेद..
अन्नप्राशन पर मिली चाँदी
की चूड़ियों को त्याग कर...
वह भागेगी उस दिशा की ओर
जिधर भागी थी रुक्मणि...
उस ओर...
जिधर शक्ति ने पाया था शिव को...-
समय की रेत पर अमिट हस्तछाप छोड़े तमाम लोग
प्रेम व कविता पर दाव लगाते हैं,
यह जानते हुए भी कि
विश्व की सर्वश्रेष्ठ वस्तुएँ रोटी नहीं देती।-
उससे ज़ियादा बर्बाद आख़िर हो भी तो कौन...
जिसने तमाम उम्र ख़र्च दी सुख़न-वरी में-
खरा प्रेम व कविताई, गहरी इनकी छाप |
जीवन का आधार भी, औ मृत्यु बाद का जाप ||-
||बिसलेरी की बोतल||
हाथ में बिसलेरी की बोतलें लिए
सरकारी बसों के पीछे भागते बच्चे,
भारत का एक मात्र सच हैं।
और बिसलेरी की बोतलें,
सबसे बड़ा फ़रेब।-
समझे जाने की दौड़ में भागती स्त्रियाँ हैं कवितायें।
किंतु स्त्रियों की भाँति कवितायें पुरुष नहीं ढूँढती,
वे ढूँढती हैं रुई के मख़मली फाहे।-
||बाँझपन का अंत||
और फ़िर एक दिन...
जन्म देने के सौभाग्य से वंचित पुरुषों ने जन्मी असंख्य ख़ूबसूरत कवितायें।-